लाइव यूथ Times @. Powered by Blogger.

Translate

My Blog List

खुशियों की होम डिलीवरी

Wednesday 19 October 2011


धीरेन्द्र अस्थाना 
दीपोत्सव है तो शॉपिंग कुछ ऎसी होनी चाहिए कि धन खर्च करने के बाद भी "लक्ष्मीजी" घर में पगफेरा डालती रहें। जरूरी नहीं कि "लक्ष्मीजी" धन-धान्य के रूप में ही आएं। उनका रूप सुख-शांति और हंसी-खुशी का भी हो सकता है। इस दीपावली खरीदारी के साथ नई चीजें लाएंगे, तो खुशियों की होम डिलीवरी आपको उमंग से सराबोर रखेगी।

पूजा-अर्चना, मौज-मस्ती और हर्षोल्लास के त्योहार दिवाली में अब ज्यादा दिन शेष नहीं हैं। छोटे-बड़े सभी इसकी तैयारियों में जोर-शोर से लगे हैं। घर में रंग-रोगन हो चुका है। शॉपिंग और होम डेकोरेशन के लिए बजट भी तैयार कर लिया गया है। त्योहारी सीजन में बाजार पूरी तरह तैयार है। ऎसे में आप कंफ्यूज हैं कि क्या खरीदें और क्या नहीं...तो आइए हम आपकी मदद करते हैं। फर्नीचर, परदे, इलेक्ट्रॉनिक गुड्स से लेकर घर की सजावट तक के लिए हमने डाली बाजार पर एक नजर, फिर बात की इंटीरियर और फैशन एक्सपट्र्स से। इस बार दीपावली पर हुई शॉपिंग सालभर आपकी जिंदगी में खुशियों की होम डिलीवरी करती रहेगी। बस जरा, एक्सपट्र्स के इन सुझावों पर गौर फरमाएं।
बिग-बॉस अंदाज में फर्नीचर

घर को स्टाइलिश लुक देने के लिए मार्केट में बिग-बॉस अंदाज का फर्नीचर उतारा गया है। फर्नीचर में स्ट्रेट लुक पसंद किया जा रहा है। लकड़ी का फर्नीचर पसंद नहीं करने वालों के लिए जहां बीन बेड की विशाल रेंज उपलब्ध है, वहीं बीन बैग लुक में चेयर और रेस्ट बेड भी मिल रहे हैं। टेली शॉपिंग पर भी इन दिनों सबसे ज्यादा क्रेज बीन फर्नीचर का ही नजर आ रहा है। नॉर्मल के अलावा अंडाकार, गोल और त्रिकोण आदि शेप के बेड भी खूब बिक रहे हैं। वुडन में इस बार सॉबर फर्नीचर डिमांड में है। ब्राउन के बजाय ब्लैक एंड व्हाइट कलर के बेड की ज्यादा वैराइटी है। डाइनिंग सेट में भी सिंपल-सॉबर स्ट्रेट पीस बिक रहे हैं। सोफा सेट में लाइट कलर्स की मांग है, वहीं सोफा-कम-सेटी में भी कई शेप्स उपलब्ध हैं। सबसे स्टाइलिश लुक इस बार बुक केस और शो-केस में देखने को मिल रहा है।

राउंड शेप में पेप्सी लोगो वाला अंदाज आपको जरूर पसंद आएगा। यह केस रेडीमेड उपलब्ध हैं लेकिन आप चाहें तो घर के साइज के अनुसार इसे बनवा भी सकते हैं। घर के दरवाजे-खिड़कियां नए लगवाने जा रहे हैं तो ध्यान रखें कि ज्यादा कटिंग्स और एंब्रॉयडरी लुक का फैशन नहीं है। फ्लैट लुक के दरवाजे-खिड़कियों पर कॉन्ट्रास्ट कलर मैचिंग की करीब तीन इंच पट्टी पसंद की जा रही है।

बड़े प्यारे हैं ये परदे
आप रंग-रोगन और फर्नीचर चेंज नहीं कर रहे हैं तो सिर्फ परदे बदलकर भी घर को ट्रेंडी लुक दे सकते हैं। इस बार झालर और राजसी अंदाज वाले परदे फैशन में नहीं हैं। स्ट्रेट लुक परदे ही डिमांड में हैं। परदों का फैब्रिक सलेक्ट करते समय ध्यान रखें कि इस पर सिलवटें न पड़ें। साथ ही, प्रिंट बहुत भरवां न हो। परदे बांधने के लिए सेंटर डोरी भी अब आउटडेटेड है। इस बार साइड डोरी विद क्लच ट्रेंड में है। खिड़कियों के लिए नेट के परदों की मांग है। ब्लैक एंड व्हाइट के अलावा रंग-बिरंगे परदे भी पसंद किए जा रहे हैं। परदे टांगने के रिंग्स बड़े रखें। रिंग्स नहीं लगाना चाहें तो शॉर्ट हैंगिंग बेल्ट स्टाइल ठीक रहेगा। इसके अलावा सोफा-सेट या बेड के आसपास या बीच में बिछाने के लिए रग्स में डार्क कलर्स पर फ्लोरोसेंट कलर की डिजाइनिंग ट्रेंड में है। रग्स इस्तेमाल नहीं करना चाहें तो पतली फाइबर शीट लुक के मैट भी उपलब्ध हैं। इनकी कीमत भी रग्स से काफी कम है लेकिन शीट क्रेक होने से ये मैट टिकाऊ नहीं होते।

अब बाजार से लाइए रंगोली
पानी के बड़े बाउल में तैरती कैंडल्स इस साल ट्रेंड में नहीं हैं। इस दिवाली जार कैंडल्स से घर को रोशन करें। छोटे-बड़े साइज के डेकोरेटेड जार में मिलने वाली इन कैंडल्स में प्लांट्स पीस भी उपलब्ध हैं। आर्टिफिशियल प्लांट और रंगीन गोलियों के साथ डिजाइन की गई कैंडल्स बहुत खूबसूरत हैं। घर की बाहरी दीवारों पर रखने के लिए कलर्ड बॉल कैंडल बाजार में उपलब्ध हैं। रंगीन रोशनी वाली ये कैंडल्स आपको जरूर पसंद आएंगी। बाजार में रेडीमेड रंगोली उपलब्ध है। मैट और स्टीकर दो स्टाइल में मिलने वाली रंगोली में ढेरों डिजाइन उपलब्ध हैं। देखने में हूबहू ऑरिजनल रंगोली की तरह लगने वाले ये रंगोली मैट आप बार-बार उपयोग कर सकते हैं। रेडीमेड रंगोली मैट के साथ छोटे दीए और छोटे कलश की पैकिंग है। रंगोली मैट बिछाकर आसपास सेट में मिलने वाले दीए और कलश रखकर आप घर की खूबसूरती और बढ़ाएं। बड़े चमचमाते क्रिस्टल के झूमर की बजाय कलर्ड ग्लास के मैट फिनिश झूमर खरीदें।

ड्राई फ्रूट नहीं, ड्राई स्वीट्स
अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को देने के लिए हमेशा की तरह सिंपल मिठाइयां या ड्राई फ्रूट मत खरीदें। मिठाइयां कुछ दिन में खराब हो जाती हैं, वहीं ड्राई फ्रूट्स पैक की कीमत ज्यादा होती है। इस फेस्टिव सीजन में बाजार में सोहन पपड़ी, लौकी बर्फी और भुजिया रोल जैसी ड्राई स्वीट्स के पैक उपलब्ध हैं। बच्चों को देने के लिए चॉकलेट्स खरीदने के बजाय जूस पैक खरीदें। बाजार में इंपोर्टेड जूस सेट की बड़ी रेंज उपलब्ध है। क्रंची रोल्स और रोचर भी खरीद सकते हैं। 

एक कमरे में चार आईपीएस अफसर

Monday 17 October 2011

-नूतन ठाकुर-
एक फूल दो माली वाली बात तो हम सभी लोगों ने सुनी है पर एक कमरे में चार आईपीएस अफसर वाली बात कभी-कभार ही सुनने को मिलती है. मैंने यह बात आज उस समय सुनी जब मेरे पति अमिताभ अपने नए दफ्तर में ज्वायन करने के बाद शाम को घर आये. स्वाभाविक उत्सुकतावश मैंने जब उनसे दफ्तर का हाल पूछा तो मालूम चला कि रूल्स और मैनुअल के इस नए दफ्तर में, जहां उनका तबादला ईओडब्ल्यू मेरठ से हुआ है, कुल दो कमरे हैं और कुल पांच आईपीस अधिकारियों की वहाँ तैनाती है. इनमे एक डीजी, दो डीआईजी और दो एसपी हैं. इनमे एक कमरा तो डीजी साहब के लिए है और बाकी चार आईपीएस अधिकारी एक छोटे से कमरे में बैठेंगे. इस तरह एक कमरे में चार वरिष्ठ आईपीएस अफसर इकठ्ठा बैठ कर क्या काम करेंगे, यह बात आसानी से समझी जा सकती है.
मैंने एक आईपीएस अफसर की पत्नी के रूप में इस दफ्तर से जुडी उन बुनियादी सुविधाओं के बारे में पूछा जिससे हर अफसर की पत्नी को सीधे मतलब होता है. मालूम हुआ कि इस पद पर उन्हें घर के कामकाज के लिए कोई कर्मचारी नहीं मिलेंगे क्योंकि वहाँ इस कार्य के लिए कोई कर्मचारी बचे ही नहीं हैं. जितने अधिकारी पहले से हैं उन्हें ही घर के लिए कर्मचारी नहीं मिले हैं, अब नए आने वाले अधिकारी को क्या मिलेगा. यह भी तब जब उत्तर प्रदेश में प्रत्येक आईपीएस अफसर को गृह कार्यों में मदद के लिए दो कर्मचारी मिलने का नियम है, जिन्हें सरकारी भाषा में फॉलोअर (या अनुचर) कहते हैं.
मैं नहीं कह रही कि यह बहुत अच्छी व्यवस्था है. मैं इसकी कोई बहुत बड़ी समर्थक नहीं हूँ और पिछले लगभग तीन सालों से, जब से अमिताभ आईआईएम लखनऊ गए थे, हम लोग वैसे भी बिना फॉलोअर के ही आराम से रह रहे हैं और मेरे घर के सारे काम-काज आराम से हो रहे हैं. यहाँ तक कि अमिताभ के मेरठ में ईओडब्ल्यू की तैनाती के दौरान भी हमारे पास फॉलोअर नहीं थे. तकलीफ तो बस इस बात की होती है कि जहां इसी विभाग में एक-एक अफसर तो आठ-आठ, दस-दस फॉलोअर इसीलिए रखे हुए हैं क्योंकि वे सरकार के महत्वपूर्ण लोगों को खुश कर के ताकतवर कुर्सियों पर बैठे हुए हैं लेकिन चूँकि मेरे पति ने इससे अलग अपना रास्ता तय करने की सोच ली है इसीलिए वरिष्ठ अधिकारी होने के बावजूद हमें बुनियादी सहूलियतें भी जानबूझ कर नहीं दी जा रही हैं.
तो जो हाल मेरठ में था, वही लखनऊ में भी रहेगा. लेकिन इसका मतलब यह नहीं हुआ कि फॉलोअर नहीं होने के कारण मित्रों को घर पर खाना नहीं खिलाउंगी. सभी मित्रों का हमेशा घर पर स्वागत है और उनकी मर्जी के अनुसार खाना भी स्वयं बना कर खिलाने में पीछे नहीं हटूंगी. मैं तो यह बात मात्र हक की लड़ाई और सरकारों द्वारा की जाने वाली बेईमानी के उदाहरण के तौर पर कर रही हूँ. मेरठ से लखनऊ में रूल्स और मैनुअल में अचानक ट्रांसफर भी तो इसी कारण से हुआ था. ईओडब्ल्यू विभाग के कुछ चोटी के बड़े अधिकारियों द्वारा की जा रही बेईमानियों का विरोध मेरे पति ने किया और इस के कारण अचानक मिड-सेशन में उनका ट्रांसफर कर दिया गया था.
दूसरी बात मैंने गाडी की पूछी तो यहाँ भी बात वही पायी. विभाग में गाडी नहीं है और इसीलिए अमिताभ अपनी ही गाडी से दफ्तर आया-जाया करेंगे. यदि सच पूछा जाए तो इसमें भी कोई बुराई नहीं है क्योंकि करोड़ों लोग तो इसी तरह से निजी अथवा सार्वजनिक वाहनों से दफ्तर आते-जाते हैं. कष्ट बस इसी कारण से होता है क्योंकि यह सब कुछ जान-बूझ कर एक अधिकारी को परेशान करने के लिए किया जाता है, क्योंकि वह व्यवस्था की गुलामी नहीं कर रहा. जब गाडी नहीं, फॉलोअर नहीं, तो सरकारी फोन आदि कहाँ से होंगे.
लेकिन इससे कई गुणा ज्यादातर गंभीर बात यह है कि यह विभाग तो बना दिया गया है, पांच-पांच आईपीएस अफसर भी तैनात कर दिये गए हैं पर काम कुछ नहीं है. आगे शायद यही होने वाला है कि दफ्तर गए, दिन भर दफ्तर की हवा खायी और शाम होने पर घर लौट आये. ऐसा इसीलिए कि जब काम ही कुछ नहीं है तो कोई करेगा ही क्या. शायद दफ्तर बनाया ही इसीलिए गया है कि यह “डम्पिंग ग्राउंड” का काम करे और सरकार या उसके ताकतवर नुमाइंदों को जिससे नाराजगी हो जाए, उसे यहाँ शीत घर में ठंडा होने और अपनी औकात जान लेने के लिए भेज दिया जाए.
पांच आईपीएस अधिकारियों के नीचे लगभग नहीं के बराबर स्टाफ है- एक स्टेनोग्राफर हैं जो सभी अधिकारियों के साथ लगे हैं. इस तरह उस विभाग में, जहां सिद्धान्ततया नियम बनाने का ही काम हो, इस काम में अफसरों की मदद करने के लिए किसी सहायक को नहीं लगाया गया है. कारण भी बहुत साफ़ है- आखिर उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में पुलिस से सम्बंधित क़ानून और नियम बनवाना ही कौन चाहता है. ये अफसर तो बस इसीलिए यहाँ तैनात कर दिये गए हैं क्योंकि सरकार को एक डम्पिंग ग्राउंड चाहिए था. इस तरह कई लाख रुपये का सरकारी पैसा इन अधिकारियों पर खर्च तो हो रहा है पर इनसे कोई भी काम लेने की सरकार को कोई दरकार नहीं दिख रही. क्या ऐसी ही सोच से उत्तर प्रदेश और उसके विभाग का कोई भला हो सकना संभव है?
चूँकि आज के समय सरकारें और उनके अधिकारी अपने किसी काम के लिए उत्तरदायी नहीं हैं और उनकी जेब से कुछ नहीं जा रहा इसीलिए वे जो मनमानी चाहें करते रहें. अन्यथा यदि वास्तव में क़ानून का राज होता और ये अधिकारी भी अपने कुकर्मों के लिए जिम्मेदार बन पाते तो इस तरह की गैरजिम्मेदार कार्यवाही के लिए उनके जेब से इन अधिकारियों को दिये जा रहे पैसे की वसूली होनी चाहिए थी. अमिताभ यहाँ चले तो गए हैं पर चूँकि वे स्थिर और शांत रहने वाले प्राणियों में नहीं हैं, इसीलिए मैं यही सोच रही हूँ कहीं ऐसा ना हो कि कहीं वे ऐसे शांत पड़े महकमे को भी गरम ना कर दें जिससे उन्हें यहाँ से भी हटाने की नौबत आ जाए.
डॉ नूतन ठाकुर आरटीआई एक्टिविस्ट और स्वतंत्र पत्रकार के बतौर सक्रिय रहने के साथ-साथ सम-सामयिक और बेहद निजी व पारिवारिक मुद्दों पर भी खुलकर लिखती-बोलती रही हैं. नूतन का मानना है कि संविधान-कानून में उल्लखित अपने अधिकारों का हम लोग समुचित उपयोग करते रहें तो पूरे देश से ज्यादातर बुराइयां खत्म हो जाएंगी और फिर वाकई अपने देश का लोकतंत्र दुनिया का सबसे महान लोकतंत्र माना जाएगा. 
भड़ास ४ मीडिया से  साभार  

धनतेरस से दीपावली तक बोलें यह गणेश मंत्र..खूब होगा धनलाभ

शास्त्रों के मुताबिक भगवान गणेश परब्रह्म के ही पांच स्वरूपों में एक है। गणपतिअथर्वशीर्ष के मुताबिक श्री गणेश को ब्रह्मा, विष्णु, महेश, सूर्य, चंद्रमा, अग्रि, नवग्रह,  पंचभूतों व सभी देवताओं का ही स्वरूप बताना गणपति अपार ब्रह्म शक्ति व स्वरूप को उजागर करता है। 
 
यही कारण है कि हर शुभ अवसर व कामनापूर्ति के लिए श्री गणेश की उपासना श्रेष्ठ मानी गई है। ऐसे ही शुभ घडिय़ों में शुमार है दीपोत्सव। जिसमें लक्ष्मी के साथ भगवान गणेश की उपासना भी ऐश्वर्य व वैभव की कामना का तत्काल पूरी करने वाली मानी गई। है। खासतौर पर प्रथम तीन दिनों यानी, धनतेरस से लेकर दीपावली तक तीन दिनों में भगवान गणेश और लक्ष्मी की प्रसन्नता का एक छोटा-सा उपाय जीवन में अपार सुख-समृद्धि और खुशहाली लाने वाला माना गया है। 
 
यह उपाय है श्री गणेश की मंत्र स्तुति का ध्यान के साथ लक्ष्मी स्वरूपा गाय की पूजा कर हरा चारा खिलाना। जानते हैं यह गणेश मंत्र स्तुति -

- धनतेरस से दीपावली के दिन प्रात: उठकर यथासंभव किसी देवालय में आंकडे के गणेश या किसी भी सिंदूर चढ़ी गणेश प्रतिमा पर सिंदूर व शुद्ध घी का लेपन करें, दूर्वा व एक जनेऊ चढाकर मोतीचूर या बूंदी के लड्ड्ओं का भोग लगाएं।

- नीचे लिखी मंत्र स्तुति बोल अंत में धूप व घी के दीप से गणेश की आरती दरिद्रता से रक्षा व भरपूर सुखों की कामना से करें।

ब्रह्मस्वरूपं  परमं मङ्गलं मङ्गलालयम्।

सर्वविघ्रहरं शान्तं दातारं सर्वसम्पदाम्।।

- गणेश पूजा के बाद गाय की गंध, अक्षत व पुष्प से पूजा कर हरा चारा खिलाएं। 
                                                                                                                                                धीरेन्द्र अस्थाना 

सादा सा सिनेमा, जिसमें बेवजह डाली गयी अपराध कथा!

Sunday 16 October 2011

♦ अविनाश 

इसे जो डूबा सो पार इट्स लव इन बिहार की कोई आधिकारिक समीक्षा न मानें। यह एक दर्शक की बहुत असावधान किस्‍म की प्रतिक्रिया है। इस प्रतिक्रिया में सिनेमा देखने की तमीज तलाशना भी बेमानी होगी : मॉडरेटर

मतौर पर मुझे फिल्‍म की समीक्षा करनी आती। किसी भी फिल्‍म पर कोई राय कायम करने में भी मुझे वक्‍त लगता है। कुछ बेहद वाहियात फिल्‍में छोड़ दी जाएं, तो मैं लगभग तमाम फिल्‍में देखने के बाद इनर्जेटिक फील करता हूं। कहने का कुल मतलब यह कि मुझे सिनेमाहॉल में वक्‍त बिताना अच्‍छा लगता है। फालतू के इमोशनल सीन में रोना भी अच्‍छा लगता है। वह जगह ऐसी लगती है, जहां आप कुछ आती-जाती रोशनियों के अलावा अपने साथ होते हैं।
जो डूबा सो पार देख कर भी मैं उत्‍साहित ही था। डायलॉग्‍स इतने मजेदार थे कि डीटी सिनेमा के खचाखच भरे ऑडिटोरियम में हमारे आसपास की जगह पूरे समय चहकती रही। रवीश थे मेरे बगल में जिन्‍होंने कहा था कि इंटरवल में निकल लेंगे, लेकिन वे फिल्‍म खत्‍म होने तक बगल में बैठे रहे। बाद बाहर की भीड़ में दिखे ही नहीं। निकल लिये। दिबांग मिले। उन्‍होंने बाहर चहकते हुए मुझे पकड़ लिया और लगभग घूरती हुई नजरों से मुझसे पूछा कि तुम्‍हें मजा आया? मैंने कहा कि हां, मुझे तो बहुत मजा आया।
ऐसा क्‍या था इसमें? मुझे तो समझ में ही नहीं आया।
मैंने दिबांग से कहा कि जो डूबा सो पार को समझने के लिए आपको बिहारी होना पड़ेगा, जो आप हो नहीं सकते। यह एक क्षेत्रीय सिनेमा है, जो हिंदी में बनायी गयी है और इसलिए हिंदी के मसाले में इसमें डाले गये हैं। गैंग भी, गाना भी। पूरी फिल्‍म में केवल विनय पाठक होते पर्दे पर, तो शायद कोई हॉल से बाहर नहीं निकलता। सबके सब हंसते हुए हॉल में ही बेहोश हो जाते। उन्‍होंने फिल्‍म में बिहारीपन की बेजोड़ काया काया ओढ़ी है। आखिरी दृश्‍य में जब वो एसपी की कार डिक्‍की से कार में बैठे हुए एसपी को फोन करके कहते हैं कि ‘डिक्‍की खोलिए न … पियासो लगा है …’ तो ये फिल्‍म का क्‍लाइमेक्‍स सीन था और डायलॉग भी – लेकिन आपको समझ में नहीं आता कि आप हंसें या कि स्‍तब्‍ध हों। और जब कुछ समझ में नहीं आता, तो आप हंसते हैं।
ये एक सादी सी मनोरंजक फिल्‍म है। ज्‍यादा टेंशन नहीं है। मजा आता है। लेकिन कुछ बातें हैं, जो लॉजिकल नहीं है। जैसे जिस इलाके की कहानी है, झंझारपुर, मधुबनी, जितवारपुर, रांटी – ये इलाके कभी आपराधिक गतिविधियों का केंद्र नहीं रहे। विदेशी चेहरे भी इन इलाकों के लिए कोई अनोखी बात नहीं है। मधुबनी पेंटिंग की वजह से विदेशी शोधार्थी यहां आते-जाते रहते हैं।
हालांकि ये इलाके नेपाल से सटे हुए हैं। मधुबनी में जयनगर के बाद जनकपुरधाम है। झंझारपुर से कुछ स्‍टेशन के बाद कुनौली बोर्डर है। लेकिन तस्‍करी के भी ये रूट नहीं हैं। यह सारा लफड़ा चंपारण से सटे बीरपुर की तरफ का है। चंपारण से सटे सारण में भी अपहरण उद्योग फलता फूलता रहा है। चंपारण का भागड़ यादव और सारण का शहाबुद्दीन बीतते सदी में खौफ के किस्‍से रहे हैं। पुराने मध्‍यबिहार में रणवीर सेना और सनलाइट सेना के चलते क्राइम का ग्राफ ज्‍यादा रहा है। ऐसे में ‘जो डूबा सो पार’ की कहानी को मधुबनी पेंटिंग की वजह से उत्तर बिहार के मिथिलांचल में केंद्रित करना तो ठीक था, लेकिन कहानी में अपराध की छौंक लगाना ठीक नहीं था।
फिर भी अगर कहानी के सिचुएशंस को हम भूगोल के यथार्थ में न देखें, तो यह एक गंभीर कहानी है। एक किशोर के एकतरफा प्रेम में पड़ने की कहानी है और उस प्रेम की वजह से कई सारे ऐसे काम को अंजाम देने की कहानी है, जो एक किशोर उम्र का लड़का नहीं कर सकता। पर इस साधारण सी कहानी को भी मजाक में कहने की कोशिश की गयी है। मजा आया, पर बहुत मजा नहीं आया।
एक विनय पाठक ही थे, जिन्‍होंने फिल्‍म की बागडोर थोड़ी थामी। इनके अलावा सादिया सिद्दीकी ने अपने खामोश अभिनय से प्रभावित किया। नायक के रूप में आनंद तिवारी और उनके दोस्‍तों ने भी किरदार के हिसाब से कहानी को जीने की कोशिश की – लेकिन रजत कपूर प्रभाव नहीं छोड़ पाये।
डाइरेक्‍टर थे प्रवीण कुमार। भोले भाले सरल आदमी हैं। मितभाषी हैं, इसलिए गुणी हैं। अगली फिल्‍म में वे जरूर कुछ कमाल करेंगे, क्‍योंकि उनके साथ हैं हिंदी के चार प्रतिभाशाली नाम। रविकांत, संजीव, प्रभात और जोसेफ। इस फिल्‍म के डायलॉग इन्‍हीं चारों लोगों ने लिखे थे। इन सबकी अगली तैयारी मनोहर श्‍याम जोशी को कसप को पर्दे पर उतारने की है।
(अविनाश। मोहल्‍ला लाइव के मॉडरेटर। विमर्श का खुला मंच बहसतलब टीम के सदस्‍य। प्रभात खबर, एनडीटीवी और दैनिक भास्‍कर से जुड़े रहे हैं। राजेंद्र सिंह की संस्‍था तरुण भारत संघ में भी रहे। उनसे avinash@mohallalive.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

करवाचौथ में ऐसे करें सोलह श्रृंगार

Friday 14 October 2011

0धीरेन्द्र अस्थाना 
करवाचौथ का व्रत हर सुहागन स्त्री के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस व्रत से सौभाग्य बढ़ता है, इसलिए इस व्रत में सुहागन स्त्रियां सोलह श्रृंगार करती हैं और पति की लंबी उम्र की प्रार्थना करती हैं। करवाचौथ के दिन कैसे अपना मेकअप करें और पारंपरिक भारतीय लुक पाएं, बता रही हैं ब्यूटी एक्सपर्ट भारती तनेजा
करवाचौथ का त्योहार सालों से मनाया जा रहा है। यह बात अलग है कि वक्त के साथ इस त्योहार को मनाने के तरीके में बदलाव आ गया है। पर जैसे आज से कई दशक पहले भी करवाचौथ की शाम को महिलाएं सज-धजकर पूजा करने के लिए बैठती थीं, वैसे ही आज की महिलाएं भी इस दिन अपने शादी वाले दिन जितनी खूबसूरत दिखने में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। अगर आज शाम आप भी खूबसूरत दिखना चाहती हैं, पर साथ ही चाहती हैं कि पार्लर में मेकअप करवाकर आपका बजट भी बढ़ न जाए, तो पारंपरिक लुक पाने के लिए ये ब्यूटी टिप्स आपके काम आ सकते हैं:
मेकअप से पहले
                        मेकअप के बाद आप सच में खूबसूरत दिखें, इसके लिए जरूरी है कि मेकअप करने से पहले भी कुछ तैयारियां की जाएं। परफेक्ट मेकअप से पहले का पहला स्टेप है क्लींजिंग मिल्क से चेहरे की सफाई। अगर आपकी त्वचा तैलीय है तो आप अपने चेहरे को क्लींजिंग मिल्क की जगह एस्ट्रीजेंट से साफ करें। इसके बाद चेहरे पर टोनर लगाएं और कुछ देर चेहरे को सूखने दें। जब चेहरा अच्छी तरह से सूख जाए तो पूरे चेहरे पर थोड़ा-सा मॉइस्चराइजर लगा लें।
दाग-धब्बों को भगाएं दूर
                                   अगर आपके चेहरे पर किसी तरह का दाग है, तो मेकअप के दौरान उसे छुपाना भी बहुत जरूरी है। आपके चेहरे के दाग-धब्बों को छुपाने का काम कंसीलर करेगा। सबसे पहले जिस जगह पर निशान है, वहां कंसीलर को अच्छी तरह से लगा लें। कंसीलर लगाने के बाद टू-वे-केक (आपके कॉम्पैक्ट पाउडर से मिलता-जुलता, पर इसमें फाउंडेशन भी होता है। इसे लगाने के बाद फाउंडेशन का इस्तेमाल करने की जरूरत नहीं पड़ती) के स्पंज को पानी से गीला करें और निचोड़ लें। अब इस स्पंज की मदद से पूरे चेहरे पर टू-वे केक लगाएं।
खूबसूरत आंखों के लिए
                                 आंखों का मेकअप आपके ड्रेस से मिलता-जुलता हो, तो खूबसूरती और बढ़ जाती है। अगर आप दिन में पूजा करने के लिए तैयार हो रही हैं तो आंखों के मेकअप के लिए हल्के रंगों का इस्तेमाल करें। गुलाबी या पीच कलर का आईशैडो लगाएं। इसके बाद पलकों पर मस्कारे का सिंगल कोट लगाएं। फिर भौह को सुंदर आकार देने के लिए ब्लैक या ब्राउन कलर की आईब्रो पेंसिल का इस्तेमाल करें। अगर रात में चंद्रमा की पूजा को ध्यान में रखकर आप मेकअप कर रही हैं तो आंखों के मेकअप के लिए डार्क शेड के रंगों का इस्तेमाल करें। रात के आई मेकअप के लिए हरा, सुनहरा या फिर बैंगनी रंग के आई शैडो का इस्तेमाल कर सकती हैं। पलकों पर अपने ड्रेस के रंग से मिलता हुआ आईशैडो लगाएं। अगर आपकी आंखें छोटी हैं तो बाहर की ओर खींचकर आईलाइनर लगाएं। इससे आंखें बड़ी-बड़ी दिखेंगी। अगर आपकी आंखें बड़ी हैं तो आंखों के बिल्कुल पास से आईलाइनर लगाएं और काजल भी  लगाएं। इससे आंखें बड़ी दिखती हैं। इसके बाद आईब्रो पेंसिल से भौंहों को खूबसूरत शेप दें।
होंठों का मेकअप
                         होंठों को खूबसूरत दिखाने के लिए पहले अपने होंठों को लिपलाइनर से सुंदर शेप दें। अगर होंठ बड़े हैं तो लिपलाइनर से अंदर की ओर लिप लाइन बनाएं और अगर होंठ छोटे हैं और आप उसे खूबसूरत लुक देना चाहती हैं तो नैचुरल लिप लाइनर से हल्का बाहर लिप लाइन बनाएं। दिन के समय होंठों पर पिंक, पीच या लाइट शेड की कोई भी लिपस्टिक लगाएं, उसके ऊपर लिप ग्लॉस लगा लें। होंठ गुलाबी हैं तो सिर्फ लिप ग्लॉस भी लगा सकती हैं। रात के समय ड्रेस से मेल खाती हुई डार्क लिपस्टिक जैसे रेड या मैरून कलर की लिपस्टिक लगाकर उसके ऊपर लिप ग्लॉस लगाएं।
गुलाबी गालों के लिए
                               अगर चाहती हैं कि आपके चेहरे से खुशी की लाली छिटकती रहे तो इसके लिए मेकअप करने के दौरान ब्लशर लगाना न भूलें। पिंक या पीच कलर का ब्लशर इस मौके पर अच्छा दिखेगा। दिन के वक्त बिल्कुल जरा-सा ब्लशर लगाएं, पर रात में थोड़ा-सा ज्यादा ब्लशर लगाना चाहिए ताकि रोशनी की कमी में आपकी खूबसूरती न छिपे। ब्लशर को ठुड्ढी से लेकर कनपट्टी तक लगाएं।
बिंदिया चमकेगी..
                           बिंदी, सिंदूर की तरह ही सुहागन के सौभाग्य का प्रतीक होती है। इसे माथे पर लगाने से त्योहार के दिन पारंपरिक लुक भी मिलता है। करवाचौथ के दिन आप अपने हाथों से कुमकुम की सुंदर-सी बिंदी लगा सकती है। वैसे औरों से अलग लुक पाने के लिए बाजार में मिलने वाली स्वरोस्की की बिंदी या फिर डिजाइनर बिंदी भी लगा सकती हैं।
ऐसा हो बालों का स्टाइल
                                   बालों को हेयर कट के अनुसार स्ट्रेट या कर्ल करवा लें। बाल लंबे है और कोई अच्छा-सा हेयर स्टाइल बनाना चाहती हैं तो जूड़ा बनाकर हेयर एक्सेसरीज लगा लें। पारंपरिक लुक के लिए आप बालों में फूल भी लगा सकती हैं।
इस बात का ध्यान रखें
                                 सोलह श्रृंगार तभी पूरा होता है, जब सिर से नख तक आप खुद को सजाती हैं। इसलिए किसी अच्छे कॉस्मेटिक क्लीनिक में जाकर मेनिक्योर एवं पेडिक्योर भी जरूर करवा लें। आजकल नाखूनों को सजाने के लिए नेल आर्ट को काफी पसंद किया जा रहा है। आप भी नेल आर्ट आजमा सकती हैं।
                                                              लेखक लखनऊ से प्रकाशित दैनिक लोकमत में संवाददाता है 

आधुनिक करवा चौथ व्रत

पत्रकार धीरेन्द्र अस्थाना 


पति की लंबी आयु की कामना मन में लिए करवा चौथ व्रत करने वाली महिलाएं दिन भर निर्जला रहने के पश्चात शाम को थाली पूजन के बाद तारों की छांव में हाथों में जल लेकर रात को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद पति के चरण स्पर्श कर उनके हाथों से जल व भोजन ग्रहण करेंगी। लेकिन वर्तमान में बदलते समय के साथ-साथ परंपराओं और त्योहारों के स्वरूप में भी परिवर्तन आया है। अब करवा चौथ भावना के अलावा रचनात्मकता, कुछ-कुछ प्रदर्शन और आधुनिकता का भी पर्याय बन चुका है। 

मिनटों में रचेगी मेहंदी :

                             वार-त्योहार पर हाथों में सुंदर मेहंदी रचाना भी हमारी परंपरा का ही एक हिस्सा है। ऐसे में समय की कमी के चलते या अन्य कामों में व्यस्त रहने के कारण कई बार मेहंदी रचाने की फुर्सत नहीं मिल पाती। वहीं हर बार मेहंदी लगाने के लिए किसी प्रोफेशनल का समय मिल पाना भी मुश्किल होता है। कोई बात नहीं… इसके लिए भी विकल्प उपलब्ध हैं। 
बड़े मॉल्स से लेकर फुटपाथ की छोटी दुकानों तक पर आपको मिनटों में हाथ मांड़ने वाले मिल जाएंगे। इनमें केवल महिलाएं ही नहीं, युवक भी शामिल होते हैं और कुछ ही मिनटों में ये आपकी मनचाही डिजाइन हाथ पर उकेर देते हैं। अगर इसके लिए भी समय न मिले तो आप बाजार में उपलब्ध टैटू का प्रयोग भी कर सकती हैं। 
ज्वेलरी-ड्रेस की एडवांस बुकिंग :

                                       सुंदर दिखने के लिए ब्यूटी पार्लर की बुकिंग तो खैर पहले भी महिलाएं करवाती ही थीं। अब इसमें किराए की ज्वेलरी तथा ड्रेसेस की एडवांस बुकिंग करवाने वालों की संख्या भी बढ़ गई है। समय की कमी के चलते कामकाजी महिलाएं तो यह कर ही रही हैं, बिना झंझट और कम बजट में कुछ अलग दिखने की चाहत के शौक के चलते गृहिणियां भी इस सुविधा का लाभ उठा लेती हैं। 
इससे एक तो आप हर बार अलग ज्वेलरी तथा ड्रेस पहनने का मजा ले सकती हैं, दूसरे सिर्फ एक बार पहनकर अलमारी में रख देने वाले कपड़ों की देखरेख का झंझट पालने से बच जाती हैं। इसलिए अब करवा चौथ के कई दिनों पहले से पार्लर में मेकअप और फेशियल आदि के साथ ज्वेलरी और लहंगे आदि की भी बुकिंग कर ली जाती है। 
पति दे रहे पत्नी का साथ:

                                 पतिदेव के दिल की ये भावना भी आजकल मन से बाहर अभिव्यक्त होने लगी है। पहले जहां 1-2 प्रतिशत लोग पत्नी का साथ देने के लिए करवा चौथ का व्रत रखते थे। अब इसका प्रतिशत काफी बढ़ गया है। यही नहीं चूंकि पति जानते हैं कि इस पूरे दिन पत्नी बिना कुछ खाए-पिए उनके लिए भूखी रहेगी तथा घर और ऑफिस के काम भी पूरे करेगी, वे इस दिन अपने खाने के लिए बाहर इंतजाम कर लेते हैं, घर के कामों में पत्नी की मदद कर देते हैं और भावनात्मक तौर पर उनके प्रति अपना आभार भी प्रकट करते हैं। 
गिफ्ट का बढ़ता चलन :

                             करवा चौथ जैसे त्योहार पर पति-पत्नी द्वारा एक-दूसरे को उपहार देने का भी चलन है। जाहिर है कि ये उपहार वाला मामला भावनाओं से जुड़ा होता है। आजकल इसमें भी कुछ नए तरीके जुड़े हैं। उपहारों के लिए नई दुकानें और मॉल्स उपलब्ध हैं ही। अब पति-पत्नी एक-दूसरे को ज्वेलरी, कपड़ों या एक्सेसरीज के अलावा प्रॉपर्टी, मेडिकल या लाइफ इंश्योरेंस, एफडी, देश-विदेश की यात्रा के पैकेज, गाड़ी तथा फाइव स्टार होटल्स के डिनर वाउचर जैसे उपहार भी देने लगे हैं। यह उपहार भविष्य को समझदारी से प्लान करने के लिहाज से भी उपयुक्त होते हैं। 
होटल्स में करवा चौथ का आयोजन :

                                            आजकल जब हर चीज बड़े पैमाने पर करने का प्रचलन चल पड़ा है तो त्योहार भला कैसे पीछे रह सकते हैं। इसलिए करवा चौथ जैसे त्योहार भी बड़े पैमाने पर किसी होटल या विशेष आयोजन स्थल पर किए जाने लगे हैं, लेकिन इसे आप फिजूलखर्ची से नहीं जोड़ सकते, क्योंकि ऐसे आयोजन अधिकांशतः समूह में किए जाते हैं, जहां खर्चे बांट लिए जाते हैं और किसी एक पर पूरा भार नहीं आता। हां, अकेले खर्च करने वाली धनाढ्य महिलाएं भी होती हैं, लेकिन उनका प्रतिशत कम होता है। इस तरह के आयोजनों से एक पंथ, कई काज सार्थक हो जाते हैं। जैसे, साथ मिलकर त्योहार मनाने का मजा, सीमित खर्च में अच्छी सुविधाओं का लाभ, बिना टेंशन के सारा आयोजन हो जाने की सुविधा आदि। मुख्य तौर पर महिला संगठनों तथा समूहों में इस तरह के आयोजन किए जाते हैं। 
मेहंदी बिना अधूरा करवा चौथ 
                                    पूरे
 साज-श्रृंगार के साथ मेहंदी के बिना करवाचौथ का व्रत अधूरा माना जाता है। शादी के समय की तरह ही इस व्रत में महिलाएं दोनों हाथों में मेहंदी लगवाती हैं। व्रत से एक रात पहले ही मेहंदी लगवा ली जाती है, ताकि व्रत वाले दिन परेशानी न हो। कामकाजी महिलाओं के लिए यह थोड़ा मुश्किल होता है, चूंकि दफ्तर से लौटने के बाद फिर वह रात में जाकर मेहंदी लगवाती हैं जिसे सुखाने में थोड़ी परेशानी होती है। करवाचौथ व्रत के एक सप्ताह पहले से ही मॉल और घर के आस-पास मेहंदी की दुकाने सज जाती हैं और दाम भी दुगने हो जाते हैं। 
हां, थोड़ा पहले मेहंदी लगवा लेंगी तो हो सकता है कुछ कीमत कम रहे लेकिन व्रत से एक दिन पहले तो मुंह मांगी कीमत मिलती है। अरेबियन मेहंदी से लेकर राजस्थानी मेहंदी आदि सभी ट्रेंड्स अपनाए जाते हैं। कुछ महिलाएं इस दिन भी मेहंदी में अपने पति का नाम छुपाकर लिखवाती हैं और फिर अपने पति से उसे ढूंढने के लिए कहती हैं।

धनतेरस के शुभ मुर्हूत में ऐसे होंगी लक्ष्मी प्रसन्न

Thursday 13 October 2011

धीरेन्द्र अस्थाना 

नमस्तेऽस्तु महामाये श्रीपीठे सुरपूजिते ।
शङ्खचक्रगदाहस्ते महालक्ष्मि नमोऽस्तुते ॥


भारतीय संस्कृति और धर्म में शंख का बड़ा महत्व है। विष्णु के चार आयुधो में शंख को भी एक स्थान मिला है। मन्दिरों में आरती के समय शंखध्वनि का विधान है। हर पुजा में शंख का महत्व है। यूं तो शंख की किसी भी शुभ मूहूर्त में पूजा की जा सकती है, लेकिन यदि धनत्रयोदशी के दिन इसकी पूजा की जाए तो दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुख की प्राप्ति के लिए तंत्र के अनुसार यह सबसे सरल प्रयोग है।यह दक्षिणावर्ती शंख जिसके घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का स्थाई निवास होता है। यदि आप भी चाहते हैं कि आपके घर में स्थिर लक्ष्मी का निवास हो तो ये प्रयोग जरुर करें
***** 
ऊं श्रीं क्लीं ब्लूं सुदक्षिणावर्त शंखाय नम:………..उपरोक्त मंत्र का पाठ कर लाल कपड़े पर चांदी या सोने के आधार पर शंख को रख दें। आधार रखने के पूर्व चावल और गुलाब के फूल रखे। यदि आधार न हो तो चावल और गुलाब पुष्पों (लाल रंग) के ऊपर ही शंख स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्न मंत्र का 108 बार जप करें- “मंत्र – ऊं श्रीं”.

अ- 10 से 12 बजे के बीच उपरोक्त प्रकार से सवा माह पूजन करने से-लक्ष्मी प्राप्ति।ब- 12 बजे से 3 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से यश कीर्ति प्राप्ति, वृद्धि।स- 3 से 6 बजे के बीच सवा माह पूजन करने से-संतान प्राप्तिइसके अन्य प्रयोग निम्न हैक. सवा महा पूजन के बाद इसी रंग की गाय के दूध से स्नान कराओ तो बन्ध्या स्त्री भी पुत्रवती हो जाती है।ख. पूजा के पश्चात शंख को लाल रंग के वस्त्र मं लपेटकर तिजोरी में रख दो तो खुशहाली आती है।ग. शंख को लाल वस्त्र से ढककर व्यापारिक संस्थान में रख दो तो दिन दूनी रात चौगुनी वृद्धि और लाभ होता है।

हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दीवाली का आरंभ धन त्रयोदशी के शुभ दिन से हो जाता है. इस समय हिंदुओं के पंच दिवसीय उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो क्रमश: धनतेरस से शुरू हो कर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीवाली, गोवर्धन (गोधन) पूजा और भाईदूज तक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था, आयुर्वेद के जनक धन्वंतरि समुद्र मंथन के समय इसी शुभ दिन अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे. इस कारण इस दिवस को धनवंतरि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है. धनत्रयोदशी के दिन संध्या समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाए जाते हैं. इस वर्ष धन तेरस, सोमवार, कार्तिक कृ्ष्ण पक्ष 24 अक्तूबर, 2011 को मनाया जाएगा. 

क्यों मुझे गाँधी पसंद नहीं है ?


1. अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोली काण्ड (1919) से समस्त देशवासी आक्रोश में
थे तथा चाहते थे कि इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाया जाए।
गान्धी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से मना कर दिया।

2. भगत सिंह व उसके साथियों के मृत्युदण्ड के निर्णय से सारा देश क्षुब्ध था व
गान्धी की ओर देख रहा था कि वह हस्तक्षेप कर इन देशभक्तों को मृत्यु से बचाएं,
किन्तु गान्धी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए जनसामान्य की इस माँग
को अस्वीकार कर दिया। क्या आश्चर्य कि आज भी भगत सिंह वे अन्य क्रान्तिकारियों
को आतंकवादी कहा जाता है।

3. 6 मई 1946 को समाजवादी कार्यकर्ताओं को अपने सम्बोधन में गान्धी ने मुस्लिम
लीग की हिंसा के समक्ष अपनी आहुति देने की प्रेरणा दी।

4.मोहम्मद अली जिन्ना आदि राष्ट्रवादी मुस्लिम नेताओं के विरोध को अनदेखा करते
हुए 1921 में गान्धी ने खिलाफ़त आन्दोलन को समर्थन देने की घोषणा की। तो भी
केरल के मोपला में मुसलमानों द्वारा वहाँ के हिन्दुओं की मारकाट की जिसमें लगभग
1500 हिन्दु मारे गए व 2000 से अधिक को मुसलमान बना लिया गया। गान्धी ने इस
हिंसा का विरोध नहीं किया, वरन् खुदा के बहादुर बन्दों की बहादुरी के रूप में
वर्णन किया।

5.1926 में आर्य समाज द्वारा चलाए गए शुद्धि आन्दोलन में लगे स्वामी
श्रद्धानन्द जी की हत्या अब्दुल रशीद नामक एक मुस्लिम युवक ने कर दी, इसकी
प्रतिक्रियास्वरूप गान्धी ने अब्दुल रशीद को अपना भाई कह कर उसके इस कृत्य को
उचित ठहराया व शुद्धि आन्दोलन को अनर्गल राष्ट्र-विरोधी तथा हिन्दु-मुस्लिम
एकता के लिए अहितकारी घोषित किया।

6.गान्धी ने अनेक अवसरों पर छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप व गुरू गोविन्द
सिंह जी को पथभ्रष्ट देशभक्त कहा।

7.गान्धी ने जहाँ एक ओर काश्मीर के हिन्दु राजा हरि सिंह को काश्मीर मुस्लिम
बहुल होने से शासन छोड़ने व काशी जाकर प्रायश्चित करने का परामर्श दिया, वहीं
दूसरी ओर हैदराबाद के निज़ाम के शासन का हिन्दु बहुल हैदराबाद में समर्थन किया।

8. यह गान्धी ही था जिसने मोहम्मद अली जिन्ना को कायदे-आज़म की उपाधि दी।

9. कॉंग्रेस के ध्वज निर्धारण के लिए बनी समिति (1931) ने सर्वसम्मति से चरखा
अंकित भगवा वस्त्र पर निर्णय लिया किन्तु गाँधी कि जिद के कारण उसे तिरंगा कर
दिया गया।

10. कॉंग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से
कॉंग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गान्धी पट्टभि सीतारमय्या का समर्थन कर
रहा था, अत: सुभाष बाबू ने निरन्तर विरोध व असहयोग के कारण पदत्याग कर दिया।

11. लाहोर कॉंग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से चुनाव सम्पन्न हुआ किन्तु
गान्धी की जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया।

12. 14-15 जून, 1947 को दिल्ली में आयोजित अखिल भारतीय कॉंग्रेस समिति की बैठक
में भारत विभाजन का प्रस्ताव अस्वीकृत होने वाला था, किन्तु गान्धी ने वहाँ
पहुंच प्रस्ताव का समर्थन करवाया। यह भी तब जबकि उन्होंने स्वयं ही यह कहा था
कि देश का विभाजन उनकी लाश पर होगा।

13. मोहम्मद अली जिन्ना ने गान्धी से विभाजन के समय हिन्दु मुस्लिम जनसँख्या की
सम्पूर्ण अदला बदली का आग्रह किया था जिसे गान्धी ने अस्वीकार कर दिया।

14. जवाहरलाल की अध्यक्षता में मन्त्रीमण्डल ने सोमनाथ मन्दिर का सरकारी व्यय
पर पुनर्निर्माण का प्रस्ताव पारित किया, किन्तु गान्धी जो कि मन्त्रीमण्डल के
सदस्य भी नहीं थे ने सोमनाथ मन्दिर पर सरकारी व्यय के प्रस्ताव को निरस्त
करवाया और 13 जनवरी 1948 को आमरण अनशन के माध्यम से सरकार पर दिल्ली की
मस्जिदों का सरकारी खर्चे से पुनर्निर्माण कराने के लिए दबाव डाला।

15. पाकिस्तान से आए विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब
अस्थाई शरण ली तो गान्धी ने उन उजड़े हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व
बालक अधिक थे मस्जिदों से से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर
किया गया।

16. 22 अक्तूबर 1947 को पाकिस्तान ने काश्मीर पर आक्रमण कर दिया, उससे पूर्व
माउँटबैटन ने भारत सरकार से पाकिस्तान सरकार को 55 करोड़ रुपए की राशि देने का
परामर्श दिया था। केन्द्रीय मन्त्रीमण्डल ने आक्रमण के दृष्टिगत यह राशि देने
को टालने का निर्णय लिया किन्तु गान्धी ने उसी समय यह राशि तुरन्त दिलवाने के
लिए आमरण अनशन किया- फलस्वरूप यह राशि पाकिस्तान को भारत के हितों के विपरीत दे
दी गयी।

17.गाँधी ने गौ हत्या पर पर्तिबंध लगाने का विरोध किया

18. द्वितीया विश्वा युध मे गाँधी ने भारतीय सैनिको को ब्रिटेन का लिए हथियार
उठा कर लड़ने के लिए प्रेरित किया , जबकि वो हमेशा अहिंसा की पीपनी बजाते है

.19. क्या ५०००० हिंदू की जान से बढ़ कर थी मुसलमान की ५ टाइम की नमाज़ ?????
विभाजन के बाद दिल्ली की जमा मस्जिद मे पानी और ठंड से बचने के लिए ५००० हिंदू
ने जामा मस्जिद मे पनाह ले रखी थी…मुसलमानो ने इसका विरोध किया पर हिंदू को ५
टाइम नमाज़ से ज़यादा कीमती अपनी जान लगी.. इसलिए उस ने माना कर दिया. .. उस
समय गाँधी नाम का वो शैतान बरसते पानी मे बैठ गया धरने पर की जब तक हिंदू को
मस्जिद से भगाया नही जाता तब तक गाँधी यहा से नही जाएगा….फिर पुलिस ने मजबूर
हो कर उन हिंदू को मार मार कर बरसते पानी मे भगाया…. और वो हिंदू— गाँधी
मरता है तो मरने दो —- के नारे लगा कर वाहा से भीगते हुए गये थे…,,,
रिपोर्ट — जस्टिस कपूर.. सुप्रीम कोर्ट….. फॉर गाँधी वध क्यो ?

२०. भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च 1931 को फांसी लगाई जानी थी, सुबह
करीब 8 बजे। लेकिन 23 मार्च 1931 को ही इन तीनों को देर शाम करीब सात बजे फांसी
लगा दी गई और शव रिश्तेदारों को न देकर रातोंरात ले जाकर ब्यास नदी के किनारे
जला दिए गए। असल में मुकदमे की पूरी कार्यवाही के दौरान भगत सिंह ने जिस तरह
अपने विचार सबके सामने रखे थे और अखबारों ने जिस तरह इन विचारों को तवज्जो दी
थी, उससे ये तीनों, खासकर भगत सिंह हिंदुस्तानी अवाम के नायक बन गए थे। उनकी
लोकप्रियता से राजनीतिक लोभियों को समस्या होने लगी थी।
उनकी लोकप्रियता महात्मा गांधी को मात देनी लगी थी। कांग्रेस तक में अंदरूनी
दबाव था कि इनकी फांसी की सज़ा कम से कम कुछ दिन बाद होने वाले पार्टी के
सम्मेलन तक टलवा दी जाए। लेकिन अड़ियल महात्मा ने ऐसा नहीं होने दिया। चंद
दिनों के भीतर ही ऐतिहासिक गांधी-इरविन समझौता हुआ जिसमें ब्रिटिश सरकार सभी
राजनीतिक कैदियों को रिहा करने पर राज़ी हो गई। सोचिए, अगर गांधी ने दबाव बनाया
होता तो भगत सिंह भी रिहा हो सकते थे क्योंकि हिंदुस्तानी जनता सड़कों पर उतरकर
उन्हें ज़रूर राजनीतिक कैदी मनवाने में कामयाब रहती। लेकिन गांधी दिल से ऐसा
नहीं चाहते थे क्योंकि तब भगत सिंह के आगे इन्हें किनारे होना पड़ता.

शनि और चन्द्र नहीं बनने देंगे राहुल को PM




कांग्रेस भले ही पीएम पद के लिए अपने युवराज राहुल गांधी को कितना भी प्रोजेक्ट करे लेकिन खुद राहुल के ग्रह उनके पीएम पद के मार्ग पर सबसे बड़े बाधक बन रहे हैं।

ज्योतिषी कह रहे हैं कि राहुल की कुंडली में बैठे चंद्र और शनि उनके पीएम पद के सपने को चकनाचूर करने पर तुले हैं। ऐसे में कांग्रेसियों की राहुल के पक्ष में कोशिशें कैसे रंग ला पाएंगी, देखना रोचक होगा। नेतृत्व के तौर पर कांग्रेस पार्टी के कार्यकर्ता अपने युवराज राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का अगला उम्मीवार बता रहे हैं। लेकिन राहुल गांधी के सितारे आने वाले चुनाव में विपक्ष में बैठने का आदेश दे रहे हैं।

सोनिया भी कुछ खास नहीं कर पाएंगी
राहुल का जन्म 19 जून 1970 ई. में 5 बजकर 50 मिनट पर हुआ। इनके जन्म के साथ ही कांग्रेस पार्टी से जुड़े लोगों ने इन्हें युवराज के तौर पर देखना शुरू कर दिया। 2 दिसम्बर 1989 को राजीव गांधी की हत्या के बाद से इनकी मां सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी को संभाला है। इस समय भले ही सोनिया विश्व की ताकतवर महिलाओं में से एक हो लेकिन राहुल का भाग्य बदलने में वो भी असमर्थ हैं। सितारे उनके खिलाफ हैं और ग्रह उनसे खफा। वर्तमान यू.पी.ए. सरकार में शामिल मंत्रियों के एक के बाद एक घोटाले में नाम आने से कांग्रेस की छवि खराब हुई है।

अस्त चन्द्रमा बन गया विलेन
राहुल की कुण्डली में द्वितीयेश चन्द्रमा त्रिक भाव में बैठा है और 2007 से इसकी महादशा चल रही है। वर्तमान में राहुल गांधी चन्द्रमा में गुरू की अन्तर्दशा के प्रभाव में हैं। दसवें भाव का स्वामी गुरू इनकी कुण्डली में वक्री होकर शत्रु राशि में जाकर बैठा हुआ है। इसलिए भागदौर से इन्हें ख्याति तो मिल रही है लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए इन्हें अभी और भागदौर और अनुभव प्राप्त करना होगा।

आने वाला समय शनि का
शनि इनकी कुण्डली में भाग्य भाव का स्वामी है और अपने से तीसरे घर में शत्रु भाव में बैठा है। 26 जनवरी 2013 से जून 2014 तक राहुल शनि की अन्तर्दशा के प्रभाव में रहेंगे। इस बीच देश में लोक सभा चुनाव की तैयारी जोरों पर रहेगी। दूसरी तरफ 15 नवम्बर से 2011 से इनकी साढ़ेसाती शुरू हो रही है। इसलिए आगामी लोकसभा चुनाव में राहुल को काफी मशक्कत करनी होगी। लेकिन परिणाम इन्हें विपक्ष में बैठने का आदेश देगा। विपक्ष में रहकर राहुल राजनीति के गुर सीखेंगे जिनका इन्हें आगे चलकर लाभ मिलेगा। इन दिनों राहुल को स्वास्थ्य पर भी ध्यान देना होगा

पत्रकार



मैं धीरेन्द्र अस्थाना आज तक कभी भी ये समझ नही पाया कि एक पत्रकार का क्या काम है? पहले मुझे लगता था कि उनका काम तथ्यों को जनता के सामने रखना होता है। यदि कोई घटना/दुर्घटना हुई है तो वो उसके बारे में लोगों को बताता है। पर धीरे धीरे मुझे पता चला कि उनका काम महज किसी घटना के बारे में बताना ही नही बल्कि निष्कर्ष निकालना भी उन्ही का काम है। यदि कोई murder हुआ है, तो ये बताना पत्रकार का काम है कि murder   किसने किया है? किसी अदालत, पुलिस, गवाह की कोई जरूरत नही है। बाद में यदि वो व्यक्ति अदालत के द्वारा बरी कर दिया जाता है, फिर...... शायद अदालत ही दोषी है ......
कुछ और भी काम हैं पत्रकारों के, जैसे कि, ये ख्याल रखना कि संजय दत्त को जेल में खाने को क्या मिला ? सलमान खान से जेल में मिलने जब कैटरिना कैफ आयीं तो उन्होने क्या पहना था? पूछिये तो वही जबाब जो एकता कपूर देती हैं, वे लोग तो वही दिखा रहे हैं जो जनता देखना चाहती है,..... पर ये काम पहले किसी और ग्रुप का नही था?
हर इलेक्शन के पहले ये लोग एक game खेलते हैं, "EXIT POLL".... हर साल इनका %error of margin करीब 10 या 20 के आसपास होता है और हर बार ये उसे मात भी दे देते हैं। फिर भी, ये इस प्रथा को साल दर साल ढोए जा रहे हैं... और आश्चर्य होता है कि उसे "SCIENTIFIC" करार देते हैं।
आजकल एक और नया काम खोजा है, पत्रकार भाइयों ने, दूसरी दुनिया के सचाइयों को हमारे समक्ष रखने का। ये बताते हैं कि आत्माओं से कैसे मिला जा सकता है? भूत और प्रेत में क्या अंतर है? चुडैल और प्रेत में कौन हमारा ज्यादा बड़ा दुश्मन/दोस्त है? और अब तो स्वर्ग का रास्ता भी दिखा रहे हैं..... धन्यवाद.....
पर इन सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण जिमेदारी जो इन लोगों ने अपने नाजुक कन्धों पर उठा रखी है, वो है, नैतिकता। ऐसा लगता है कि नैतिकता आज के जमाने में सिमट कर बस इन्हें के दामन में रह गयी है। तभी तो हर छोटी बड़ी बात पर ये लोग क्या मुख्यमंत्री और क्या प्रधानमंत्री सभी को नैतिकता की सिख दे बैठते हैं। क्या करना चाहिए, कैसे करना चाहिए, सब कुछ इन्हें पता होता है। मुझे तो लगता है देश की सत्ता अब इन्हीं लोगों के हाथों में सौंप देनी चाहिए और फिर यकीं मानिए हमारी सारी समस्या देखते देखते गायब हो जायेगी।
आपको नही लगता??

Media Dalal .com

About Me

My Photo
Live Youth Times
View my complete profile

khulasa.com