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मीडिया की पैदाइश हैं निर्मल बाबा और उन जैसे लोग

Wednesday 14 March 2012


तमामों भ्रामक विज्ञापन दृश्य और श्रव्य संचार माध्यमों के साधनों में प्रसारित हो रहे हैं. उनमें से एक है ये किन्ही "निर्मल बाबा का दरबार" ..... देश भर में विख्यात दूसरे सामान्य और विशिष्ट संतों के उलट ये खुद में ही देवत्व का दावा करते हैं. उनका कहना है की जिस भी व्यक्ति में निष्ठा के साथ समर्पण किया जाए उसमें भगवान का अंश यानी देवत्व आ जाता है. शादी-व्‍याह में प्रयोग की जानी वाली भव्य कुर्सी में बैठने के शौकीन ये निर्मल बाबा किसी एयरकंडीशंड हाल में बैठे कुछ लोगों को बिना उनका असली नाम-पता या अन्य किसी जानकारी को पूछे समस्या के हल का जो उपाय बताते हैं, उस को देखकर आश्चर्य होता है.
अपने प्लांटेड लोगों को खड़ा कर ये बाबा जी सवाल पूछ्वाते हैं. बार-बार किसी “अदृश्य कृपा” की बात कर वो जनता में भय पैदा करते हैं. यही आश्चर्य और भय उनकी पूंजी है. जिस पर इस देश में सरकार कहलाने वाले तंत्र की कोई नजर नहीं है. सूत्र बताते हैं की युवराज सिंह की माँ शबनम सिंह भी निर्मल बाबा के चक्कर में थीं. उनसे इक्कीस लाख रुपये ऐंठ चुके बाबा जी बार-बार इसी कृपा के माध्यम से युवराज के कैंसर के ठीक हो जाने का दावा करते रहे थे, पर युवराज ठीक ना हो सके थे. अंततः मेडिकल साइंस की मदद से ही सही इलाज शुरू हो सका.
दूसरी तरफ ये भी बता दूं कि कम महत्वपूर्ण समय में या देर रात प्रसारित होने वाले संधी-सुधा तेल, चेहरे पर चेहरा लगाकर सवाल करने वाले क्विज-कार्यक्रमों सहित इन निर्मल बाबा जी का यह दरबार और सवालों का कार्यक्रम भी टेलीविजन पर विज्ञापन ही है. एक चैनल में कार्यक्रम या विज्ञापन की कीमत एक करोड़ रुपये है. लगभग सौ चैनलों में और तीन महीनों से चलने वाले इन महंगे और भ्रामक विज्ञापनों की कीमत का अंदाजा लगाइए... साथ ही यह भी कि इनके पास इतना रुपया कहाँ से आया कि ये ऐसे महंगे विज्ञापन करें.
ये एक बानगी है. पूरे देश में लोकल चैनलों में तांत्रिक, झाड-फूंक, जादू-टोना करने वाले और तमाम फर्जी सेक्सोलोजिस्ट अखबार, चैनलों और रेडियो की मदद से अपना काला जादू चलाये हुए हैं. कब, कौन और कैसे रोका जाएगा ये सब?? खुलेआम विज्ञापन करने के बावजूद अब तक आयकर विभाग या फिर सीबीआई की नज़रों से ये अभी तक कैसे और क्यों बचे हैं?? कानपुर में डाक्टर’स डे के मौके पर एक जुलाई को विगत वर्ष एक फर्जी सेक्सोलाजिस्ट का विज्ञापन सभी बड़े हिंदी और अंग्रेजी अखबारों में प्रकाशित हुआ था, जिसकी असलियत मैंने उजागर थी. परिणामतः काकादेव थाने में उसके खिलाफ छह मुकदमें दर्ज हुए थे. आज भी वो हाईकोर्ट से बिना जमानत पाए स्थानीय पुलिस और प्रशासन की मदद से अपना जाल-बट्टा जारी रखे हुए ही. अब मुझे भी लगने लगा है, यही झूठ और ड्रामा इस तरह का कम करने वालों का वास्तविक जादू है.
लेखक अरविंद त्रिपाठी कानपुर में पत्रकार हैं तथा चौथी दुनिया से जुड़े हुए हैं

अखिलेश के लिए चुनौतियों भरा होगा आगे का सफ़र

Sunday 11 March 2012


Aniruddh Chaturvedi 


लखनऊ | उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) को मिले प्रचंड जनादेश के बाद सबसे कम उम्र में मुख्यमंत्री बनने जा रहे अखिलेश यादव के सामने चुनावी वादों को पूरा करने के साथ-साथ जो सबसे बड़ी चुनौती होगी वह है पिछली सपा सरकार की ख़राब कानून-व्यवस्था की छवि को तोड़कर एक बेहतर और मजबूत कानून राज को स्थापित करना।

15 मार्च को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में कमान संभालने जा रहे अखिलेश यादव के सामने चुनावी वादों की लंबी सूची है, जो उनके और उनकी पार्टी के दूसरे नेताओं द्वारा जनता से किए गए हैं।

इस चुनाव में सपा ने अपने घोषणा पत्र में सच्चर और रंगनाथ मिश्रा कमेटी की सिफारिशें हूबहू लागू करने के लिए केंद्र सरकार पर दबाव बढ़ाने, किसानों और बुनकरों का कर्ज माफ करने के साथ उन्हें बिजली मुफ्त देने की बात कही थी। इसके अलावा गरीब बच्चों को मुफ्त शिक्षा और दवा, शिक्षित बेरोजगारों को बेरोजगारी भत्ता, मेधावी कन्याओं को कन्या विद्या धन देने के साथ इंटर पास छात्रों को लैपटॉप और दसवीं पास छात्रों को इलेक्ट्रॉनिक टैबलेट देने जैसे वादे किए थे।

कर्ज माफी में एकमुश्त 11 हजार करोड़ रुपये, मुफ्त बिजली देने में हर साल 1650 करोड़ रुपये, लैपटॉप और टैबलेट देने में करीब पांच हजार करोड़ रुपये, 25 साल से ज्यादा उम्र के बेरोजगारों को को हर महीने 1000 रुपये बेरोजगारी भत्ता देने में हर साल करीब 1000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है।

समाजवादी सरकार के वायदों की कुल कीमत करीब 40 हजार करोड़ रुपये बैठती है और राज्य का राजकोषीय घाटा करीब 19 हजार करोड़ रुपये है। ऐसी खस्ताहाल अर्थव्यवस्था में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के लिए वादा निभाना आसान नहीं होगा।

गुंडागर्दी और अपराध पर लगाम लगाना तो सपा के युवराज के लिए सबसे बड़ी चुनौती होगी। लोग अखिलेश से उम्मीद कर रहे हैं कि पिछली सपा सरकार की तरह गुंडों और माफियाओं पर नरम रवैया नहीं बल्कि उन पर कठोर कारवाई होगी।

हालांकि शनिवार को विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद कानून-व्यवस्था को लेकर अखिलेश ने जोर देकर कहा, "सपा की सरकार कानून-व्यवस्था भंग करने वालों से सख्ती से निपटेगी। इसमें किसी तरह की ढील नहीं दी जाएगी और ऐसा करने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।"

राजनीतिक विश्लेषक एच.एन.दीक्षित कहते हैं, "साफ-सुथरी छवि, सहज अंदाज और डीपी यादव जैसे माफियाओं को पार्टी में शामिल न करने जैसे कुछ फैसलों से जनता के दिल में जगह बनाने वाले अखिलेश के सामने चुनावी वादे पूरे करने के साथ सुशासन के जरिये लोगों को यह भरोसा दिलाने की हर पल यह चुनौती होगी कि उन्होंने सपा को बहुमत देकर कोई गलती नहीं की।"

होली : रंग, उत्साह और उमंग का त्यौहार

Saturday 3 March 2012


धीरेन्द्र अस्थाना 




भारत विभिन्न संस्कृतियों और धर्मों को एक साथ लेकर चलने वाला देश है. यहां हर मौसम में विविध त्यौहार आते हैं जो मिलने-मिलाने का बेहतरीन अवसर प्रदान करते हैं. हर कुछ महीने बाद देश त्यौहारों के रंग में डूबा नजर आता है. वसंत ऋतु अपने साथ देश का सबसे रंगीन त्यौहार “होली” लेकर आता है. होली भारत का एक बेहद लोकप्रिय त्यौहार है. रंगों का त्योहार कहा जाने वाला यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है.
holi 2012
होली पूरे देश में एक समान हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है बस इसको मनाने के तरीके हर जगह अलग होते हैं. ब्रज, मथुरा और बरसाना की होलियां तो देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में प्रसिद्ध हैं. होली के दिन जैसे पूरा देश ही रंगो में डूब जाता है. होली एक ऐसा त्यौहार है जिसमें लोग आपसी दुश्मनी और बैर भूलकर एक हो जाते हैं. होली का रंग दुश्मनी को खत्म कर देता है.
होली की कथा
होली के पर्व के पीछे भी सभी भारतीय त्यौहारों की तरह कई धार्मिक कहानियां जुड़ी हुई हैं. होली मनाने के पीछे सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है कि यह त्यौहार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर था जो भगवान विष्णु का कट्टर दुश्मन माना जाता था लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का सबसे बड़ा भक्त था. अपने बेटे को अपने विरुद्ध देख हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की योजना बनाई. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था उसके साथ मिलकर प्रह्लाद को मार देने का निश्चय किया. लेकिन जैसे हिरण्यकश्यप ने सोचा था हुआ बिलकुल ठीक उसके उलट. होलिका प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठ गई लेकिन आग की लपटों से झुलस होलिका की ही मृत्यु हो गई और प्रह्लाद बच गए. तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी.
होली और कृष्ण की जोड़ी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण सांवले रंग के थे और उनकी सखा राधा श्वेत वर्ण की थीं जिससे कृष्ण को हमेशा उनसे जलन होती थी और वह इसकी शिकायत अपनी माता यशोदा से करते थे. एक दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को यह सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो. बस फिर क्या था कृष्ण ने होली के दिन राधा को अपने मनचाहे रंग में रंग दिया. कृष्ण की नगरी मथुरा और ब्रज में होली की छटा देखते ही बनती है.
होली की कथा
होली के पर्व के पीछे भी सभी भारतीय त्यौहारों की तरह कई धार्मिक कहानियां जुड़ी हुई हैं. होली मनाने के पीछे सबसे ज्यादा प्रचलित कथा है कि यह त्यौहार हिरण्यकश्यप की बहन होलिका के मारे जाने की स्मृति में मनाया जाता है. पुराणों के अनुसार प्राचीन समय में हिरण्यकश्यप नामक एक असुर था जो भगवान विष्णु का कट्टर दुश्मन माना जाता था लेकिन उसका खुद का पुत्र प्रह्लाद विष्णु जी का सबसे बड़ा भक्त था. अपने बेटे को अपने विरुद्ध देख हिरण्यकश्यप ने उसे मारने की योजना बनाई. हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका जिसे आग में ना जलने का वरदान प्राप्त था उसके साथ मिलकर प्रह्लाद को मार देने का निश्चय किया. लेकिन जैसे हिरण्यकश्यप ने सोचा था हुआ बिलकुल ठीक उसके उलट. होलिका प्रह्लाद के साथ अग्नि में बैठ गई लेकिन आग की लपटों से झुलस होलिका की ही मृत्यु हो गई और प्रह्लाद बच गए. तभी से इस त्योहार के मनाने की प्रथा चल पड़ी.
होली और कृष्ण की जोड़ी
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण सांवले रंग के थे और उनकी सखा राधा श्वेत वर्ण की थीं जिससे कृष्ण को हमेशा उनसे जलन होती थी और वह इसकी शिकायत अपनी माता यशोदा से करते थे. एक दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को यह सुझाव दिया कि वे राधा के मुख पर वही रंग लगा दें, जिसकी उन्हें इच्छा हो. बस फिर क्या था कृष्ण ने होली के दिन राधा को अपने मनचाहे रंग में रंग दिया.कृष्ण की नगरी मथुरा और ब्रज में होली की छटा देखते ही बनती है.
गुझियों की मिठास
मिठाइयां होली की विशेषता हैं. होली पर भारत में विशेष रुप से गुझियां बनाने की परंपरा है. गुझिया एक बेहद मीठी और स्वादिष्ट मिठाई होती है.
गुझियों के साथ होली के दिन ठंडाई पीना भी कई जगह रिवाज में शामिल है. ठंडाई एक शीतल पेय है जिसे दूध, भांग, बादाम मिलाकर बनाया जाता है. हालांकि होली के रंग में कई बार ठंडाई रंग में भंग का काम कर देता है क्योंकि ठंड़ाई में जो भांग होती है वह एक तरह का नशीला पदार्थ होता है.
होली का त्यौहार हमें एकता और हंसी खुशी रहने का संदेश देता है. होली में मस्ती तो की जाती है लेकिन वह मस्ती अश्लीलता से दूर होती है. आज के समय में होली की हुड़दंग को युवाओं ने अश्लीलता से भरकर रख दिया है. केमिकल कलर और गुब्बारों ने पर्व की महिमा को कम किया है तो होली के दिन विशेष रुप से शराब पीना लोगों का कल्चर सा बन गया है. होली एक धार्मिक पर्व है जो हमें खुश होने का एक मौका देता है. इसे ऐसा ना बनाएं कि किसी की खुशी छिन जाए.
होली को सुरक्षित और इस अंदाज से मनाएं कि देखने वाले देखते ही रह जाएं. अपनी होली को रंगीन बनाएं और प्राकृतिक रंगों से सराबोर कर दें.

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