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यूपी निकाय चुनाव का प्रथम चरण 50 फीसदी वोटिंग के साथ संपन्न

Saturday 23 June 2012

लखनऊ | उत्तर प्रदेश में शनिवार को संपन्न हुए नगर निकाय चुनाव के प्रथम चरण की वोटिंग में छिटपुट हिंसा के बीच शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हो गयी। राज्य निर्वाचन आयोग के मुताबिक कुल 50 फीसदी मतदान हुआ। मतदान के दौरान अपने दायित्वों का ठीक प्रकार से निर्वहन न करने के आरोप में चार अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलम्बित भी किया गया। राज्य निर्वाचन आयुक्त सतीश कुमार अग्रवाल ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि मतदान पूरी तरह शांतिपूर्ण तरीके से सम्पन्न हुआ। मतदान का प्रतिशत 50 फीसदी रहा।
उन्होंने कहा कि मतदान के दौरान कुछ अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई और कुछ अधिकारियों ने अपने दायित्वों का निर्वहन ठीक ढंग से नहीं किया। इसके लिए पीजीआई के थाना प्रभारी धीरज सिंह, आलमबाग के क्षेत्राधिकारी बृजेश सिंह को तत्काल प्रभाव से निलम्बित करने का फैसला लिया गया है।
आयुक्त ने कहा कि इनके निलम्बन के लिए के मुख्य सचिव को पत्र भेज दिया गया है और जल्दी ही इनके निलम्बन की कार्यवाही शुरू कर दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि आगामी चरणों में यदि इस तरह की घटनाएं होती हैं तो वरिष्ठ अधिकारियों पर भी कार्रवाई की जाएगी।
इससे पहले लखनऊ के तेलीबाग इलाके में स्थित मोकू सिंह इंटरमीडिएट कॉलेज में बने मतदान केंद्रों पर फर्जी मतदान को लेकर दो पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई। मामले को बढ़ता देख पुलिस को बीच-बचाव के लिए उतरना पड़ा लेकिन लोगों ने पुलिस पर पथराव शुरू कर दिया। बाद में लोगों को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को लाठी चार्ज करना पड़ा। पुलिस ने इस मामले में 12 लोगों को गिरफ्तार भी किया है।
इस मामले में पुलिस महानिदेशक अम्बरीश कुमार शर्मा ने कहा कि संबंधित मतदान केंद्रों में फर्जी मतदान की लिखित शिकायत नहीं मिली है और यदि शिकायत मिली तो उसकी जांच कराई जाएगी।
दूसरी ओर, एक अन्य रोचक घटनाक्रम के मुताबिक भाजपा के वरिष्ठ नेता कलराज मिश्र मतदान नहीं कर पाए। मिश्र जब महात्मा गांधी वार्ड में मतदान करने पहुंचे तो मतदाता सूची से उनका नाम गायब था और उन्हें बैरंग वापस लौटना पड़ा।
कलराज मिश्र की तरह ही राजधानी के इंदिरा नगर, अलीगंज, आशियाना और अमीनाबाद में लोगों ने मतदाता सूची में नाम न होने की शिकायतें कीं।
भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी अपने मताधिकार का उपयोग किया। इसके बाद मीडियाकर्मियों से बातचीत में उन्होंने कहा, "केंद्र सरकार महंगाई से निपटने में नाकाम साबित हुई है। भाजपा के शासनकाल के दौरान महंगाई पूरी तरह नियंत्रित रही। केंद्र की सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए लोगों को आगे आना होगा।"
प्रदेश के प्रोटोकॉल राज्यमंत्री अभिषेक मिश्रा ने भी अपनी पत्नी स्वाती मिश्र के साथ अपने मताधिकार का उपयाोग किया। इसके बाद उन्होंने लोगों से घरों से निकलकर मतदान करने की अपील की।
राजधानी लखनऊ में सुबह सात बजे ही मतदान शुरू हो गया। इस बीच राज्यपाल बी.एल. जोशी ने भी अपने मताधिकार का उपयोग किया और लोगों से मतदान करने की अपील की।
लखनऊ में नगर निगम सहित आठ नगर पंचायतों के लिए शनिवार को मतदान सम्पन्न हो गया। नगर निगम में महापौर के पद के लिए 12 व पार्षदों के 110 पदों के लिए 1679 प्रत्याशियों की किस्मत वोटिंग मशीनों में बंद हो गई।
जानकारी के मुताबिक मतदान के शुरुआती दौर में लखनऊ के कश्मीरी मुहल्ला आशियाना के अलावा कई इलाकों में मतदाताओं ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन खराब होने की शिकायतें कीं।
ज्ञात हो कि यूं तो प्रदेश में पहले चरण का मतदान 24 जून को होना है लेकिन विभिन्न प्रतियोगिता परीक्षाओं के चलते लखनऊ में एक दिन पहले ही मतदान कराया गया।
उल्लेखनीय है कि रविवार को पहले चरण के तहत 17 जिलों में 24 जून को होने वाले मतदान के लिए चुनाव प्रचार शुक्रवार शाम को थम गया।

भीषण गर्मी, कतरा रहे समर्थक

Monday 18 June 2012

धीरेन्द्र अस्थाना 
पारा करीब 43 डिग्री के इर्दगिर्द घूम रहा है। लू के थपेड़े अपना जलवा दिखने से पीछे नहीं हट रहे। चुनावी माहौल में दोपहर में सूनी पड़ी गलियों में अब मेला सा लगने लगा है। चुनावी माहौल में नारों से गूंजने वाली गलियों में दोपहर होते ही शांति छा जाती है। तपती दोपहरी में समर्थक भी कन्नी कांट रहे हैं, लेकिन कुछ फिर भी डटे हुए है। गर्मी के चलते साथ रहने वाले नेताओं के समर्थक खास कामों का बहाना बना कर दोपहर में प्रचार में जाने से बच रहे हैं। आलम यह है कि दोपहर में मीटिंग और सुबह और शाम के वक्त प्रचार हो रहा है। हालांकि बिजली-पानी की किल्लत के कारण भी समर्थक प्रचार में जाने से कतरा रहे हैं। नगर निगम के 110 वार्डों पर 1782 प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं। भीषण गर्मी का असर चुनाव पर भी दिखाई पड़ रहा है। भीषण गर्मी ने आमजन के साथ ही प्रत्याशियों के होश उड़ा दिए हैं। प्रत्याशियों को गर्मी से निपटते हुए चुनाव जितने के लिए समर्थक जुटाने में काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। सामान्य मौसम में होने वाले चुनाव में चुनावी नारों और वायदों से गूंजने वाली मोहल्लों की गलियां इस चुनावी मौसम में दोपहर में सूनी पड़ी हैं। पुराने लखनऊ के वार्डों समेत नई आबादी के वार्डों की गलियों में डोल-ताशों पर नेताओं के समर्थकों के नारों की गूंज सुनाई नहीं पड़ रही है। गर्मी ने दोपहर में चुनाव प्रचार पर असर डाल रखा है। दोपहर होते ही प्रत्याशियों के समर्थक बहाने बाजी के साथ मोबाइल का स्वीच ऑफ कर रख है। समर्थकों के इस रवैए को देख प्रत्याशियों ने दोपहर में सिर्फ मोहल्लों में अपने समर्थकों के घर मीटिंग कर रहे हैं। सुबह प्रभात फेरी और शाम ढलने के बाद प्रचार को निकल रहे है।

फर्जी कालेजों पर नकेल कसने की शासन की तैयारी

Sunday 17 June 2012

शरद शुक्‍ला

लखनऊ। फर्जी इंजिनियरिंग कालेज चलाने वालों पर शासन नकेल कसने की तैयारी में जुट गया है। जिसके लिए शीघ्र ही एक टीम गठित की जाएगी, जो कालेजों पर छापेमारी करेगी। छापेमारी के दौरान अगर कालेज के मानक व दस्तावेज सही नहीं मिले तो उनके खिलाफ कठोर कार्रवाई होना तय है। 

एआईसीटीई ऐसे कालेजों पर जल्द ही कार्रवाही शुरू करने जा रहा है। जांच टीम के निशाने पर फर्जी कालेज तो रहेंगे ही, साथ ही जिन कालेजों को सम्बद्वता प्रदान कर दी गई है उन कालेजों का भी टीम बारीकी से परीक्षण करेगी। अगर मानक सही नहीं मिले तो कालेज की सम्बद्वता समाप्त होगी।

नए शैक्षिक सत्र की शुरूआत होने से पहले अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद कालेज के मानकों को सही करना चाहती है। इसी को लेकर परिषद ने प्रदेश के सभी कालेजों का दौरा करने की कवायद शुरू कर दी है। परिषद ने वरिष्ठ अधिकारियों के नेतृत्व में जांच टीम गठित की है। ये जांच टीम मानको का परिक्षण करके अपनी रिपोर्ट शासन के सामने प्रस्तुत करेगी।

सूत्रों की माने तो एआईसीटीई की टीम इंजिनियरिंग के सभी कालेजों का दौरा करने वाली है। इन कालेजों को पहले भी नोटिस जारी की जा चुकी है। फिर भी उन्होंने मानको को पूरा नहीं किया है।
राजधानी में आज की तारीख में 50 से भी अधिक तकनीकी शिक्षण संस्थान ऐसे हैं जिन्होंने गलत जानकारी प्रस्तुत कर पहले तो एआईसीटीई और बाद में गौतमबुद्व तकनीकी विश्‍वविद्यालय से मान्यता व सम्बद्वता हासिल कर ली लेकिन जब मौके पर पहुंचकर एआईसीटीई की टीम ने पड़ताल की तो सच्चाई कुछ और ही सामने आयी। किसी ने रिर्पोट की जगह को दिखाकर मान्यता ले रखी है। तो कही तेल पेराई की भूमि को दिखाया गया था।
कॉलेजों के पास जमीन तो बहुत दिखी लेकिन फैकल्टी और लाइब्रेरी का टोटा रहा। वहीं कुछ तो ऐसे भी है जहां निर्माण कार्य आज भी जारी है।
इन कालेजों को बकायदा नोटिस मिला, साथ ही तय तिथि मानको को पूरा करने का आदेश भी प्राप्त हुआ। लेकिन कॉलेज आज भी मानकों को पूरा नहीं कर पाए है। फर्जी दस्तावेजों के आधार पर मान्यता लेकर कालेज खोलने वाले मालिकों के खिलाफ शिकायत मिलने पर सीबीआई ने भी छापामार अभियान समय-समय पर चलाया है।
यूपी में इसकी शुरूआत जीबीटीयू के स्थापना वर्ष 8 मई 2000 के बाद से शुरू हुई। जिसे पूर्व में यूपीटीयू के नाम से जाना जाता था। यूपीटीयू से सम्बद्वता लेने वालों कालेजों की संख्या उस समय मुठ्ठी भर ही थी। लेकिन वर्ष 2005 के बीतने तक यह आकड़ा 150 को पार कर चुका था। जबकि वर्ष 2012 तक सम्बद्वता हासिल करने वालों की संख्या को देखा जाए तो यह आंकड़ा लगभग 850 तक पहुंच चुका है। शिक्षा माफियाओं द्वारा शिक्षा का बाजारीकरण कर देने के बाद से सीबीआई का दखल इस ओर बढ़ा है।
सूत्र बताते है कि वर्ष 2000 में मोहनलालगंज स्थित लखनऊ कालेज आफ टेक्नोलाजी एण्ड मैनेजमेन्ट कॉलेज को फर्जी दस्तावेज के आधार पर मान्यता मिलने की लिखित शिकायत राष्ट्रपति तक पहुंची थी। उस समय 166 संस्थानों की सूची राष्ट्रपति को सौंपी गई थी।
मान्यता देने के नियम
यदि कालेज को विभिन्न पाठ्यक्रमों की कक्षाएं चलवानी है तो पहले एआईसीटीई में जो विषय पढ़वाने और कॉलेज खोलने के लिए मान्यता के लिए अनुमति लेनी पड़ती है। जिसके आधार पर एआईसीटीई कॉलेजों के बुनियादी ढ़ाचे, फैकल्टी, लाइब्रेरी, कक्षाएं व बिल्डिगं की जाचं कराती है। उसके बाद यूपीटीयू की टीम जाकर मौके पर निरिक्षण करती है। फिर निरीक्षण से सम्बधित दस्तावेज शासन के पास भेजती है। तब जाकर किसी कालेज को मान्यता मिलती है।

यूपी के माननीयों को चाहिए अपने इलाके की जेल!



उत्तर प्रदेश में विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद माननीयों को अब अपने इलाके की जेलों में रहने की तमन्ना जाग उठी है। उनकी इसी हसरत को देखते हुए सरकार भी इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बना रही है।लाख टके का सवाल यह है कि हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोपों को लेकर जेलों में बंद दबंग और बाहुबली विधायकों को उनके इलाके की जेलों में भेजने और उन्हें सुख सुविधाए दिए जाने की मांग कहां तक जायज है?
वरिष्ठ टीकाकारों की मानें तो अपने इलाके की जेलों में रहने के दौरान आरोपी विधायकों को अपनी हनक दिखाने, अपने धन-बल और नेटवर्क का पूरा इस्तेमाल करने तथा तमाम तरह की सुविधाओं के उपभोग करने की पूरी छूट मिल जाती है। अपने जिले की जेल में पहुंचने के पीछे उनके तमाम तरह के हित जुड़े होते हैं।
उत्तर प्रदेश में चल रहे मौजूदा विधानसभा सत्र के दौरान इस बात की मांग की गई कि जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक आरोपी सांसदों और विधायकों को जेलों में विशेष सुविधा का दर्जा दिया जाए और उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्रों में स्थित जेलों में ही रखे जाने की व्यवस्था की जाए।
इस बीच प्रदेश के जेल मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी कहा कि सरकार इस मांग पर विचार कर सकती है।
सवाल यह उठता है कि गम्भीर आरोपों में जेलों में बंद विधायकों को सरकार इतनी खास तवज्जो क्यों देने जा रही है। जेलों के भीतर विशेष सुविधाओं की मांग करना कहां तक जायज है?
उत्तर प्रदेश में विधायक की हत्या से लेकर तमाम तरह के संगीन आरोपों में कई विधायक विभिन्न जेलों में बंद हैं। क्या उन्हें जेलों में ढेर सारी सुविधाएं इसलिए मुहैया करा दी जाएं क्योंकि वह जनप्रतिनिधि हैं। जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एक आम कैदी की तरह व्यवहार क्यों नहीं किया जा सकता है?
विधानसभा में हद तो तब हो गई जब कारागार मंत्री राजा भैया ने आगरा की जेल में बंद निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी को उनके इलाके की जेल दिलवाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाने तक का आश्वासन दे दिया।
विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने प्रश्न के जरिए यह मांग की थी कि ब्रिटिशकाल के दौरान जेल यातनागृह थे, लेकिन अब उन्हें सुधार गृह माना जाता है। न्याय का यही नैसर्गिक सिद्धांत है कि जब तक दोष साबित न हो जाता तब तक किसी को दोषी नहीं माना जाता। बहुत से सांसद और विधायक भी विभिन्न दफाओं में जेलों में बंद किए जाते हैं और बाद में अदालत से वे निर्दोष साबित हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ईश्वर चंद्र द्विवेदी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि ऐसी बातें इसलिए उठाई जा रही हैं ताकि अपने भविष्य के लिए जमीन तैयार की जा सके।
द्विवेदी बड़ी साफगोई से कहते हैं कि अब सूचना के अधिकार का जमाना आ गया है। सूचना के अधिकार का प्रयोग कर लोग तमाम तरह की जानकारियां हासिल कर रहे हैं। इसीलिए जनप्रतिनिधियों पर दबाव बढ़ा है। अब कोई माफिया यदि बनारस से जुड़ा है और उसे कई सौ किलोमीटर दूर ले जाकर दूसरी जेल में बंद कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर उसका नेटवर्क प्रभावित होता है।
द्विवेदी ने कहा कि इसके पीछे साफतौर पर मंशा यही है कि इस तरह के उपाय किए जाएं और कानून में बदलाव की बात की जाए ताकि भविष्य में यदि किसी तरह की नौबत आए तो इसका फायदा उठाया जा सके।
वरिष्ठ टीकाकारों की मानें तो अपने इलाके की जेलों में रहने के दौरान आरोपी विधायकों को अपनी हनक दिखाने, अपने धन-बल और नेटवर्क का पूरा इस्तेमाल करने तथा तमाम तरह की सुविधाओं के उपभोग करने की पूरी छूट मिल जाती है। अपने जिले की जेल में पहुंचने के पीछे उनके तमाम तरह के हित जुड़े होते हैं।उत्तर प्रदेश में चल रहे मौजूदा विधानसभा सत्र के दौरान इस बात की मांग की गई कि जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक आरोपी सांसदों और विधायकों को जेलों में विशेष सुविधा का दर्जा दिया जाए और उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्रों में स्थित जेलों में ही रखे जाने की व्यवस्था की जाए।इस बीच प्रदेश के जेल मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी कहा कि सरकार इस मांग पर विचार कर सकती है।सवाल यह उठता है कि गम्भीर आरोपों में जेलों में बंद विधायकों को सरकार इतनी खास तवज्जो क्यों देने जा रही है। जेलों के भीतर विशेष सुविधाओं की मांग करना कहां तक जायज है?उत्तर प्रदेश में विधायक की हत्या से लेकर तमाम तरह के संगीन आरोपों में कई विधायक विभिन्न जेलों में बंद हैं। क्या उन्हें जेलों में ढेर सारी सुविधाएं इसलिए मुहैया करा दी जाएं क्योंकि वह जनप्रतिनिधि हैं। जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एक आम कैदी की तरह व्यवहार क्यों नहीं किया जा सकता है?विधानसभा में हद तो तब हो गई जब कारागार मंत्री राजा भैया ने आगरा की जेल में बंद निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी को उनके इलाके की जेल दिलवाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाने तक का आश्वासन दे दिया।विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने प्रश्न के जरिए यह मांग की थी कि ब्रिटिशकाल के दौरान जेल यातनागृह थे, लेकिन अब उन्हें सुधार गृह माना जाता है। न्याय का यही नैसर्गिक सिद्धांत है कि जब तक दोष साबित न हो जाता तब तक किसी को दोषी नहीं माना जाता। बहुत से सांसद और विधायक भी विभिन्न दफाओं में जेलों में बंद किए जाते हैं और बाद में अदालत से वे निर्दोष साबित हो जाते हैं।उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ईश्वर चंद्र द्विवेदी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि ऐसी बातें इसलिए उठाई जा रही हैं ताकि अपने भविष्य के लिए जमीन तैयार की जा सके।
द्विवेदी ने कहा कि इसके पीछे साफतौर पर मंशा यही है कि इस तरह के उपाय किए जाएं और कानून में बदलाव की बात की जाए ताकि भविष्य में यदि किसी तरह की नौबत आए तो इसका फायदा उठाया जा सके।



गज़ल के बेताज बादशाह मेहदी हसन नहीं रहे

Wednesday 13 June 2012


कराची/भारत । मेहदी हसन और गजल के चाहने वालों के लिए आज का दिन बुरी खबर लेकर आया है। मेहदी हसन का बुधवार को कराची के अस्पताल में निधन हो गया। पिछले कई दिनों से मेहदी हसन का इलाज कराची के अस्पताल में चल रहा था। हसन को फेफड़े, छाती और पेशाब करने में परेशानी थी। हसन के बेटे आरिफ हसन ने बताया कि उनके पिता पिछले 12 वर्षों से बीमार थे लेकिन इस साल उनकी तबियत ज्यादा खराब हो गई। शहंशाह-ए-गजल मेहदी हसन का बुधवार को कराची के अस्पताल में निधन हो गया। 85 साल के हसन पिछले दो साल से बीमार चल रहे। पिछले कुछ दिनों से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। डॉक्टरों ने हसन की हालत को देखते हुए उन्हें वेंटिलेटर पर रखा था। वह इलाज के लिए भारत आना चाहते थे, लेकिन खराब हालत के चलते डॉक्टरों ने यात्रा करने से मना कर दिया था।
मेहदी हसन के सीने और फेफड़े में इन्फेक्शन था। तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका। हसन की गजल गायिकी के मुरीद भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में थे। 'अबके बिछड़े' और 'पत्ता पत्ता बूटा बूटा' जैसे सदाबहार गज़लों को अपनी आवाज देने वाले हसन ने हाल में अपनी बीमारी की वजह से अपनी आवाज खो दी थी।
हसन का जन्म राजस्थान के झुंझुनूं जिले के लूणा गांव में 18 जुलाई 1927 को हुआ था। मेहदी हसन को संगीत विरासत में मिला। उनका परिवार संगीतकारों का परिवार था। कलावंत घराने में मेहदी हसन व उनसे पहले की 15 पीढ़ियां संगीत से जुड़ी हुई थीं।
धीरेन्द्र अस्थाना 

लैपटॉप और टेबलेट का बेसब्री से इंतजार

Monday 11 June 2012

लैपटॉप और टेबलेट पाने के लिए विद्यार्थियों में उत्सुकता बढ़ती ही जा रही है। सपा सरकार ने बजट में 500 करोड़ रुपये की भी व्यवस्था की है, लेकिन अब बात है कि सभी उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को चुनाव से पहले किए वादे के अनुसार लाभ मिलेगा या नहीं। इस सबंध में डीआईओएस को भी दिशा-निर्देश नहीं मिले हैं।

मुख्यमंत्री ने युवाओं को सबसे ज्यादा तौहफे दिए हैं। चुनावी वादों के अनुसार मुख्यमंत्री ने बजट में भी अपने वादों को पूरा करने का प्रयास किया है। बजट में हाईस्कूल व इंटरमीडिएट पास करने वाले छात्र- छात्राओं को टेबलेट और लैपटॉप देने के लिए 500 करोड़ की व्यवस्था की गई है। ऐसी स्थिति में यूपी बोर्ड से पास होने वाले सभी छात्र-छात्राओं को टेबलेट और लैपटॉप मिल पाएंगे। अब लैपटॉप और टेबलेट के लिए छात्र-छात्रों में उत्सुकता बनी हुई है। उन्हें इस संबंध में आने वाले आदेश का इंतजार है।

यूपी बोर्ड से हाईस्कूल में 28970 और इंटरमीडियट में 20660 परीक्षार्थी पास हुए हैं। चुनाव के दौरान चर्चाएं थी कि 75 प्रतिशत या अधिक अंक प्राप्त करने वालों को ही लेपटॉप या टेबलेट मिलेंगे। अगर चर्चाओं को सही माना जाए तो जनपद में ऐसे छात्र-छात्राएं 398 हैं। हाईस्कूल के आकड़े अभी नहीं है।

प्रथम स्थान पाने वाले छात्र-छात्राओं को चुना जाता है तो इंटरमीडियट के 6250 छात्र- छात्राएं हैं। हाईस्कूल में ग्रेडिंग सिस्टम होने के बाद प्रतिशत निकालना और प्रथम श्रेणी का आंकलन करना कठिन कार्य है। इस संबंध में डीआईओएस सव्रेश कुमार का कहना है कि अभी तक शासन स्तर से दिशा-निर्देश नहीं आए हैं। शासनादेश आने पर कार्य किया जाएगा। अभी कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है।

बेरोजगारी भत्ता की तरह न बन जाए खिचड़ी युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की योजना को अंतिम रूप देने में सपा सरकार को काफी मशक्कत करनी पड़ी। इससे पूर्व बेरोजगारी भत्ता पाने के लिए नामांकन कराने को लोगों में काफी मारामारी हुई थी। सरकार ने कई बार अपने ही आदेश में संशोधन किया। अंत में स्पष्ट आदेश जारी कर अनेक युवाओं को हताश कर दिया।

गृहिणियों को भत्ता-औरत को बराबरी हासिल करने में बाधा ही बनेगा

Friday 1 June 2012

अंजलि सिन्हा

पहली बार किसी सरकारी स्कीम के तहत गृहिणियों को रु.1,000/- प्रतिमाह भत्ते की शुरूआत गोवा में हो गयी है। (टाइम्स आफ इण्डिया 13-5-12 ) वर्तमान सत्तासीन भाजपा ने चुनाव के दौरान अपने चुनावी घोषणापत्र में ऐलान किया था कि जीतने और सरकार में आने पर वह गृहिणियों को भत्ता देगी। यह भत्ता उन परिवारों को मिलेगा जिनकी आय प्रतिवर्ष 3 लाख रुपये से कम होगी। सरकारी सूचना में बताया गया है कि लगभग सव्वा लाख परिवार इसका लाभ उठाएंगे। महिला एवम् बालविकास अधिकारी ने मीडिया को बताया कि इस महंगाई के समय में गृहिणियों को घर सम्भालना मुश्किल हो रहा है। कुछ गृहिणियों से जब इस बारे में राय मांगी गयी तो कुछ ने कहा कि इससे हमें समाज में सम्म्मान मिलेगा, किसी ने कहा कि वह हमारा पैसा होगा, छोटी-मोटी चीजों के लिए पति से पैसा नहीं मांगना पडे़गा तथा यह भी राय आयी कि हम 24 घण्टे 7 दिन मेहनत करते हैं लेकिन हमें कभी कोई मेहनताना नहीं मिलता है, इससे हमें आजादी का एहसास होगा आदि।

सच बात है हाथ में पैसे आएंगे तो किसे बुरा लगेगा। लेकिन सोचना तो यह है कि वह औरत को अपनी गरिमा, आजादी, आत्मविश्वास कितना दिलायेगा और क्या वही उसका मेहनताना होगा। देखना होगा कि औरत दूरगामी रूप से घर और समाज में क्या लक्ष्य हासिल करना चाहती है। एक तरफ औरत की स्थिति का सवाल है , दूसरी तरफ इन राजनैतिक पाटियों का सवाल है जिन्हें चुनाव के समय लोगों के दुख, तकलीफ याद आते हैं फिर उनमें से कुछ वायदों को वे पूरा कर देते है। हमें यह नही भूलना चाहिए कि महिलायें भी एक वोट बैंक है, अब वे सिर्फ पति या परिवार के कहने पर वोट नहीं डालती बल्कि बाकायदा अपने मत के अधिकार का इस्तेमाल करती हैं। अगर महंगाई से राहत ही मकसद हो तो उसमें विशेषतः गृहिणियों का उल्लेख क्यों? जो भी परिवार गरीब है उन्हें महंगाई भत्ता मिलता! निश्चित ही इस स्कीम को महिलाओं के वोट बैंक को मजबूत करने के तौर पर देखा जा सकता है।

यूँ तो उपरोक्त घोषणापत्र में युवकों को भी बेरोजगारी भत्ता देने की बात की गयी थी। मगर इन दोनों भत्तों के फरक को आसानी से देखा जा सकता है। बेरोजगार युवक युवतियों को रोजगार मुहैया कराना सरकार की जिम्मेदारी होती है। सरकार को ऐसे इन्तजाम करने होते हैं, ऐसी नीतिया बनानी होती हैं जिसमें रोजगार के अवसर उपलब्ध हो सकें। शिक्षा की दिशा पर भी विचार करना होता है ताकि उसके जरिए कुशल एवं सक्षम व्यक्तियों का निर्माण हो सके। जब तक सरकार यह जिम्मेदारी पूरी नहीं करती और युवा को नौकरी नहीं मिलती है तब तक बीच के अवधि के लिए उसे बेरोजगारी भत्ता की व्यवस्था करनी होती है।

दूसरी तरफ, किसी महिला को गृहिणी बनाने के लिए सरकारी नीति की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है। यद्यपि महंगाई उन्हें प्रभावित करती है लेकिन वह तो वैसे हर इन्सान को प्रभावित करती है। हमारे समाज में महिलाओं की अच्छी खासी आबादी गृहिणी है यह वास्तविकता है। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इसमें सरकार की भलाई है। अगर ये सारी गृहिणियां रोजगार पाने का दावा करने लगें तो बेरोजगारों की फौज में और कितनी बढ़ोत्तरी हो जाएगी इसका सहज अन्दाजा लगाया जा सकता है और यह फौज सरकार के लिए मुसीबत खड़ा कर सकती है।

दरअसल महत्वपूर्ण यह है कि घर का काम और उसके महत्व को आंकना और उसका पारिश्रमिक तय करना आदि। पिछले तीस-चालीस साल से यह मुद्दा बना हुआ है जो किसी न किसी रूप में औरत की सामाजिक स्थिति से उभरता है। अर्थशास्त्रियों एवम् सरकारों ने जब कर्मचारी का वेतन तय किया तो कहा कि इसमें उसके परिवार के भरण-पोषण का आयाम ध्यान में रखा जाता है। फैमिली वेज की अवधारणा में यही था कि चूंकि कर्मचारी को मेहनत करने लायक बनाए रखने के लिए परिवार का योगदान महत्वपूर्ण है इसलिए मजदूर के वेतन में परिवार की आय भी अप्रत्यक्ष रूप से जुडी होनी चाहिए।

ये सारे विचार जनपक्षीय एवम् महिलाओं को मदद करने वाले लगते हैं लेकिन औरत यहां बराबर की कर्मचारी और प्रत्यक्ष आय अपने मेहनत के बदले हासिल करने वाली नहीं बनती है, वह बाहर जाकर कमाने वाले का पोषण करती है ताकि उसका भी गुजारा चलता रहे। दूसरी बात कि औरत के पारिश्रमिक की चर्चा कानून की निगाह में तब करनी पडती है जब वह किसी हादसे या दुर्घटना में मारी जाय और उसका मुआवजा उसके परिवार को मिलना हो। देश के कई न्यायालयों में ऐसे केस दायर हुए हैं जब कोर्ट को औरत के गृहकार्य की कीमत तय करनी पडी है। औरत के काम की महत्ता कई तरह से गिनायी जाती है। कहा जाता है कि औरत सिर्फ घर का काम ही नही बल्कि भविष्य का कामगार भी तैयार करती है।

इन सभी बातों में महत्वपूर्ण यह है कि खुद औरत के पक्ष में क्या तर्क सही है। क्या उसे घर के अन्दर ही सारी सुविधा और वेतन आदि मुहैय्या कराया जाय या वह भी इस लायक बने कि वह प्रत्यक्ष कामगार श्रेणी में आ जाय? किस तर्क से घरकाम सिर्फ उसे सम्भालना चाहिए ओर इसमें किसका फायदा, किसका नुकसान है। किसी कारण से बाहर की आय जब रूकेगी या उसे नहीं मिलेगी तो घर सिर्फ भत्ते से नहीं चलेगा। उसकी निर्भरता प्रत्यक्ष वाली कमाई पर रहेगी और इस रूप में वह पुरुष पर निर्भर रहेगी। यदि प्रत्यक्ष कमाई का अवसर उसे ही मिलता रहेगा। यह किसी न किसी रूप में जेण्डर भेद को पैदा करता रहेगा।

राजनीतिक पार्टियां किस तरह पितृसत्तात्मक सोच को बढ़ावा देती हैं इसके कई उदाहरण देखे जा सकते हैं। उदाहरण के लिए उपरोक्त घोषणापत्र में यह वादा भी किया गया है कि लड़कियों की शादी के खर्च के लिए उनके खाते में एक लाख रूपए जमा किए जाएंगे। सवाल है कि क्यों उन्हें शिक्षा या कोई हुनर सीखने के लिए कोई आर्थिक सहयोग देने की बात नहीं की गयी। विवाह में खर्च बेटी वाले ही करते हैं इस सामाजिक रीति को सरकारी नीति में भी मुहर लगा दी गयी। वैसे तो ऐसी सोच का मसला सिर्फ गोवा में सत्तासीन सरकार का नहीं है। कई अन्य सरकारी घोषणाओं में बेटी की शादी में आर्थिक मदद की पेशकश की जाती है। कुछ साल पहले भारतीय जीवन बीमा निगम की तरफ से शुरू की गयी बीमा पालिसी की खूब आलोचना हुई थी। उपरोक्त पालिसी का फोकस बेटी की शादी और बेटे की पढ़ाई पर था।

चूँकि पहली बार गोवा सरकार ने नगद पैसे के रूप में गृहिणी का पद सृजित कर उन्हें प्रत्यक्ष लाभ की बात कही है और यह मांग देखादेखी बनी रहेगी इसलिए इस मुद्दे पर समझ बनाना जरूरी है। दूरगामी रूप से यह औरत को बराबरी का दर्जा हासिल करने में बाधा ही बनेगा। समाज और सरकार को चाहिए कि वह उसके लिए हर क्षेत्र में बराबर का अवसर उपलब्ध कराए तथा पूरे समाज में ऐसे वातावरण निर्मित करे जहां वे बराबर की प्रत्यक्ष कमाने वाली बने। रही बात घर काम की तो वह भी पूरे परिवार को मिलकर ही उसको निपटाना आदर्श होगा।

लमहों की लापरवाही, सदियों का दर्द


कुछ लोग अपनी सेहत बनाने के लिए लाखों रूपये खर्च करते है। तो कुछ लोग अपने पैसें से सिगरेट पीकर अपनी सेहत खराब करते है। इसे समझदारी कहा जाए या आदत की मजबूरी। भारत की पचास प्रतिशत आबादी तम्बाकू का प्रयोग करती है। जिसमें शहर व गाव के दोनों लोग शमिल है। पुरूष के अपेक्षा भारतीय महिलाएं इसके उपयोग में ज्यादा दिलचस्पी रखती हैं। अगर इनका प्रतिशत देखा जाए तो 15 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत के बीच आता है। अगर बच्चों के मामलें तम्बाकू का प्रयोग देखा जाए तो 13 से 15 वर्शो के स्कूली बच्चे इनका प्रयोग करते नजर आ रहे है। जिसमें सबसे अधिक गोवा में 3,3 प्रतिशत व नांगालैण्ड 62,8 प्रतिशत है। जबकि 1980 में इसके तम्बाकू सेवन से मरने वाले लोगों की सख्या छ:लाख तीस हजार था। आज के समय में इसके सेवन से मरने वालों की सख्या आठ से नौ लाख प्रतिवर्श हो गर्इ है। इसके सेवन से कैंसर, दिल की बीमारी व फेफड़े का रोग मुख्य रूप से होता है। अगर एक नजर इसके इतिहास पर डाले इसका कोर्इ लगभग 8000 वर्ष पुराना है। जो कि 1492 के कोलंम्बस के अमेरिका की धरती पर कदम रखने के साथ का है। जबकि भारत में तम्बाकू लाने का श्रेय पुर्तगालियों को जाता है, वह भी सन 1600 वी सदी में भारतीय से परिचय करवाया था। भारत में औधौगिक तौर पर करने की कोशिश1787 में कलकता के षिबपुर के बोटेनिकल गार्डन से इसकी शुरूआत हुर्इ थी। 1829 से ब्रिटिश सरकार ने औधौगिक स्तर पर इसकी शुरूआत की और कइ प्रकार के बीजों के नइ किस्म को उगाने का प्रयास किया जाने लगा। 1998-1999 भारत में महिलाओं के तम्बाकू के उपयोग पर एक नजर डाले तो मिरोजम में 61 प्रतिशत महिला उपयोग करती थी। जबकि 30 से 40 प्रतिशत के बीच ओडिषा व अरूणाचल प्रदेश के उपयोग किया जाता हैं। असम व मेधालय में 20 से 30 प्रतिशत के बीच इस्तेमाल किया जाता हैं। मणिपुर,सिकिकम, नांगालैण्ड,मघ्य प्रदेश ,उतर प्रदेश ,महाराश्ट्र व पश्चिम बंगाल में 15 से 20 प्रतिषत तक उपयोग महिलाए करती हैं। जबकि दस साल के बच्चों के मामलें में देखें तो दो लाख पचास हजार तक बच्चे सलाना इसका उपयोग करते है। जो कि शहर व गाव में दोनो क्षेत्रों से जुड़े है। विकसित देषों में तम्बांकू के सेवन से दिल की बीमारी के कारण मरने वालों लोगों की सख्या सबसे ज्यादा है। समय-सीमा के पहले हार्ट अटैक आने के कारण मौतें के प्रमुख कारण है। ऐसा नही है कि सरकार ने इसे रोकने के लिए पर्याप्त कदम नही उठाए है। जन संचार के माघ्यम से रोकने की भरपूर कोषिश की जा रही है। काफी हद तक इसमें सफलता भी मिली। और यही आषा व उम्मीद करते है कि आने वाला समय भारत व समस्त विकसित राष्ट्र के लिए तम्बांकू मुक्त हो।


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