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अवध की महिमा लखनऊ महोत्सव

Thursday 17 November 2011


                                                                        धीरेन्द्र अस्थाना 


Lucknow Festival
लखनऊ महोत्सव या लखनऊ त्योहार लखनऊ के रहने वाले संस्कृति है, जो पुराने शहर के सुसंस्कृत वातावरण में एक अंतर्दृष्टि प्रदान करता है मनाता है. रंगीन जुलूस, पारंपरिक नाटकों, प्रसिद्ध लखनऊ घराने, ग़ज़ल के साथ सारंगी और सितार रेसिताल्स की शैली में कथक नृत्य, क़व्वाली और ठुमरी एक उत्सव के माहौल बना.
इक्का दौड़, पतंगबाजी, मुर्ग़ो की लड़ाई और अन्य पारंपरिक गांव खेल की तरह रोमांचक घटनाओं बीते नवाबी दिनों के माहौल बहलाना. विमानों का प्रदर्शन है और एक भी प्रसिद्ध मुँह पानी नवाबी व्यंजनों की एक स्वाद हो सकता है.

15 दिन त्यौहार, उत्तर प्रदेश पर्यटन और लखनऊ के जिला प्रशासन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित पूरे देश की मिश्रित संस्कृति पेश अन्य राज्यों के कारीगरों द्वारा स्टालों है और उत्तर प्रदेश की स्थानीय प्रतिभाओं के लिए एक मंच प्रदान करता है.
लखनऊ महोत्सव अमर लालित्य और अवध की महिमा, अब लखनऊ कब्जा. कला, शिल्प, और इस देश के सभी विदेशी व्यंजनों के ऊपर एक शानदार प्रदर्शन, त्योहार एक बार में एक जीवन भर का अनुभव है. एक लखनवी भोजन के पारंपरिक व्यंजनों का स्वाद कर सकते हैं, मुंह में पानी शाकाहारी भोजन से लेकर होंठ smacking प्रसार मांसाहारी जिसके लिए लखनऊ प्रसिद्ध है.
लखनऊ महोत्सव के लिए समय 

25th नवंबर और 5 दिसंबर के बीच लखनऊ, उत्तर प्रदेश यह अमर सुंदरता और प्राचीन शहर अवध, अब के रूप में जाना जाता है के splendours कब्जा की राजधानी शहर में यह त्यौहार मनाया जाता है. 10 दिन लंबे घटना चिरस्थायी और प्राचीन शहर लखनऊ की कृपा ग्रंदयूर्स काप्तिवातेस. इस महोत्सव की याद दिलाता है लखनऊ की वर्तमान संस्कृति है जो शहर के पुराने और सभ्य माहौल में सहज ज्ञान प्रदान करता है.


हिन्दी का भविष्य, भविष्य की हिन्दी शहर बोलता है..



पिछले शनिसच्चर को शहर में दूसरे शहरों के कई दिग्गज मसिजीवी जुटे। यानी साहित्यकारों का माइक्रो कुम्भ आयोजित हुआ। शब्दों की गंगा बही। तथाकथित डूबती-उतराती हिन्दी को मझधार से बल्ली-शल्ली लगाकर किनारे लाने की रणनीति बनायी जाती रही। किसी ने कहा कि हिन्दी को बचाना है तो अपने बच्चों को अंग्रेजी स्कूलों से निकालना होगा। किसी ने कहा कि बाजारवाद और वैश्विकरण की सुनामी हिन्दी को ले डूबेगी। हिन्दी भाषा के प्रलय की डेट 2040 तक अनाउंस कर दी गयी। हिन्दी की गरीबी की रेखा तक तय कर दी गयी। यानी बीस हजार से कम वेतन वाले हिन्दी की गरीबी की रेखा के नीचे आते है। बताते चलें कि इस कुम्भ का आयोजन शहर के एक खास वर्ग के लेखक कराते है। तय साहित्यकार आते है। पहचाने से श्रोता भी पूरी शिद्दत से सालाना उर्स की तरह अपनी सुविधानुसार आते है। कोई मुद्दा पुड़ियाते है और सड़क के उस पार, किसी चाय स्पांसर के साथ, अपनी एक अलग बहस चला देते है। खैर, जिस तरह सचिन की बैटिंग होने पर स्टेडियम फुल हो जाता है उसी तरह यहां भी बाल की खाल निकालने वाले आलोचक वक्ता (बैट्समैन) को सुनने के लिए लोग जुटने लगते है। इस बार ऐसा कोई धुरंधर आलोचक नहीं आया। अब सचिन के न खेलने पर स्टेडियम का क्या हाल होता है उसी तरह का कुछ माहौल वहां भी था। लविवि के हिन्दी व पत्रकारिता विभाग के विद्यार्थियों ने वक्ताओं के लिए संजीवनी का काम किया। एक चाय और दो बिस्कुट पर वे जितनी देर बैठ सकते थे, बैठे। साहित्यकार स्वयं प्रकाश जी का सम्मान किया गया। उन्होंने काफी खुलकर अपनी बात रखी। उनकी सोच ने मुझे खासा प्रभावित किया। स्टेज से नीचे आये तो नयी उम््रा के पत्रकारों ने उन्हें घेर लिया। मैंने भी बाद में लम्बी व खास बातचीत के लिए उनका मोबाइल नम्बर ले लिया। उन्होंने झट नम्बर नोट करा दिया। घंटी बज रही है। मोबाइल उठता है, ’हैलो प्रकाश भाई बोल रहे है?‘
’जी बोल रहा हूं।‘ ’भाई साहब मै खबरनवीस बोल रहा हूं। मेरा सवाल यह है कि क्या हिन्दी के दिन जल्दी ही लदने वाले है?‘
जवाब : ऐसा हो गया तो बहुत मुश्किल होगी। गांव के लोग फिर क्या बोलेंगे, समझेंगे। हिन्दी बहुत ही मोटी चमड़ी की भाषा है। वह जल्दी खत्म नहीं होगी क्योंकि उसमें उसका अपना कुछ भी नहीं है। यह तो कटोरा छाप भाषा है। जिसने जो डाल दिया, अपना लिया। हिन्दी जब खनकती है तो उसमें संस्कृत, अरबी, फारसी, उर्दू, लैटिन, अंग्रेजी, पाली, अपघंश सभी तरह के छोटे-बड़े सिक्के होते है। सवाल : थोड़ देर के लिए मान लीजिए कि हिन्दी खत्म हो जाए तो क्या होगा? जवाब : होगा क्या, हिन्दी फिल्में अंग्रेजी में डब होंगी, सब्जी वाला पोटेटो, टुमैटो, ब््िरांजल, लेडी फिंगर की गुहार लगायेगा। गांव के लोग झाड़ा फिरने की जगह संडास जायेंगे। हिन्दी दिवस, हिन्दी अकादमियों, हिन्दी उन्नयन संस्थान के बजट से अंग्रेजी का पोषण होगा। हिन्दी के अध्यापक चना जोर गरम बेचेंगे। अंग्रेजी पढ़ना-बोलना सिखाने वाले टीचर सबसे ज्यादा दहेज पायेंगे। शादी-ब्याह में श्लोक की जगह अंग्रेजी ट्रांसलेशन पढ़ा जाएगा। सबसे ज्यादा खुश कुत्ते होंगे क्योंकि वे पहले से ही अंग्रेजी समझते और भौकते है। बस लिखने की प्रैक्टिश और करनी पड़ेगी उन्हंे। सवाल : पुरस्कार को आप किस नजरिये से देखते है? जवाब : पुरस्कार तो अच्छे ही लगते है। बुरा तब लगता है जब चेक बाउंस हो जाता। खैर, पुरस्कार आपकी जिम्मेदारी बढ़ाते है। इनाम की राशि बढ़ती रहे, इसके लिए और ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है। (कुछ रुक कर)..एक मिनट जनाब, आप मुझे कहीं स्वयं प्रकाश तो नहीं समझ रहे है ??.. सॉरी जनाब मै तो ज्ञान प्रकाश हूं। क्लर्क हूं। छोटा-मोटा लेखक भी हूं। आपके सवाल मुझे अच्छे लग रहे थे इसलिए मै थोड़ा इंटरेस्ट लेने लगा था। सॉरी।..उसने फोन काट दिया। अब हिन्दी सुरक्षित थी।..
 प्रेमेन्द्र श्रीवास्तव
     

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