धीरेन्द्र अस्थानाआखिरकार दुर्दांत आतंकवादियों की कायरना करतूत एक बार फिर सफल हो गई। वेडनेस-डे फिर एक बार बेकसूर और निर्दोष लोगों के लिए ब्लैक वेडनेस-डे साबित हुआ। सुबह जब अपने परिवार के हँसते-खिलखिलाते चेहरों को देखकर और उनकी खुशियों के लिए जो लोग बाहर निकले थे वह अब कभी घर नहीं पहुँचेंगे। क्योंकि आतंकवादियों की कायरना करतूत के कारण अब वह उनसे बहुत दूर चले गए हैं। किसी का बेटा मारा गया, तो किसी का सुहाग उजड़ गया, तो किसी मासूम के सिर से उसके पिता का साया छिन गया।
दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए इस दर्दनाक आतंकी हमले के कारण जो वीभत्स दृश्य सामने आए वे रोंगटे खड़े करने वाले हैं। मारे गए लोगों के परिजन अस्पताल में अपनों की तलाश में जहाँ-वहाँ भटकते रहे। बस सबकी एक चाहत बची थी कि वह कब उसने मिलकर अपने दिल का गुबार कम लें, आखिरी बार मिल लें और यह कह सकें कि तुम मुझे क्यों छोडक़र चल गए। तुमने तो जिंदगीभर साथ निभाने का वादा किया था। ऐसे नजारे अस्पताल और मारे गए लोगों के घरों पर भी सुनाई दिए। यह कैसी विडंबना है कि इन कायरनों हमलों में हमेशा मजबूर और निर्दोष लोग ही काल कालवित होते हैं।
कितने मासूमों के पिता उन्हें छोडक़र चले गए। इन मासूमों से जब सुबह इनके पिता मिलकर गए तो बच्चों ने अपने पापा से बोला होगा कि पाप आज आप कब आओगो... इन मासूमों को क्या मालूम कि पापा अब कभी नहीं आएँगे और उन्हें अब जिंदगी भर पिता के बगैरह जीना सीखना होगा। देश में कब तक ऐसे हमले होते रहेंगे और कब तक मासूमों के सिर से उनके पिता का साया उठता रहेगा।
हमले होते हैं तो सब जाग जाते हैं और आरोप-प्रत्यारोप लगने लगते हैं पर कोई इस विषय में गंभीर पहल नहीं करता कि अब हमला नहीं होने चाहिए और अगर होगा तो हम किसी से नहीं डरेंगे और वो ही करेंगे जो इस देश की जनता चाहती तब कहीं शायद निर्दोषों की जान बच सके नहीं तो हर माँ, पत्नी और बच्चे जिंदगी भर अपने का इंतजार करते रहेंगे और शायद वह फिर कभी नहीं आएँगे
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