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धनवंतरि की पूजा से होती है `धन वर्षा`

Monday 12 November 2012

पुराणों में इस बात का वर्णन है कि समुद्र मंथन के अंतिम दिन भगवान विष्णु कलश में अमृत लेकर `धनवंतरि` के रूप में प्रकट हुए थे और ऐसी मान्यता है कि भगवान धनवंतरि की पूजा से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर `धन वर्षा` करती हैं।
दीपों के पर्व दीपावली के दो दिन पूर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को देश भर में धनतेरस मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस के दिन धातु की कोई वस्तु खरीदने का रिवाज काफी समय से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु अत्यधिक फलदायक होती है।
किंवदंती कुछ ऐसी है कि देवताओं और राक्षसों के बीच हुए युद्धविराम के समझौते के बाद जब समुद्र में मंथन किया गया था, तब समुद्र से चौदह रत्न निकले थे। इनमें एक रत्न अमृत भी था। भगवान विष्णु देवताओं को अमर करने के लिए `धनवंतरि` का रूप लेकर प्रकट हुए थे। और कलश में अमृत लेकर समुद्र से निकले थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
शास्त्रों में भगवान धनवंतरि की परिकल्पना चार भुजाओं वाले तेजवान व्यक्तित्व के रूप में की गई है। इनके एक हाथ में अमृत कलश, एक हाथ में शंख व एक हाथ में आयुर्वेद तंत्र लिपिबद्ध रुपमें है। चौथे हाथ में वनस्पतियां भी दिखाई देती है।
चूंकि भगवान विष्णु ही धनवंतरि के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से व्यापारी वर्ग के अलावा गृहस्‍थ जीवन बिता रहे लोगों को काफी लाभ होता है। त्रयोदशी की सुबह स्नान के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र की स्थापना करनी चाहिए और उसके बाद मंत्रोच्चारण करना चाहिए। आचमन के लिए जल छोड़ना चाहिए। कहा यह भी जाता है कि धनवंतरि की पूजा भगवान विष्णु की पूजा है, इसलिए माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद के प्रवर्तक भी माना जाता है। इनकी जयंती पर आयुर्वेद चिकित्सकों सहित अन्य चिकित्सक एवं वैज्ञानिक श्रद्धा भक्ति के साथ पूजन हवन करके इस दिन को मनाते हैं। इन्हें देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है। इस दिन ही धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस का भी पर्व मनाया जाता है। सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता में भगवान धनवंतरि को चिकित्‍सा विधा में निपुण बताया गया है। उन्हें शल्य चिकित्सा का प्रवर्तक भी माना जाता है।
धनवंतरि मानवों को रोगों से बचाने और उसे स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद के ज्ञान को भी अपने साथ लाए थे। आयुर्वेद अनादि और अनंत है। सर्वप्रथम इसका ज्ञान सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को हुआ। इसीलिए ब्रह्मा को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। ब्रह्मा के बाद दक्ष प्रजापति अश्विन कुमारों, इंद्र, भारद्वाज, पुनर्वसु,अग्निवेशतथा धनवंतरि जैसे ऋषियों, मुनियों द्वारा आयुर्वेद भूलोक पर अवतरित हुआ। शरीर, इंद्रीयपनऔर आत्मा के संयोग को आयु कहा गया है। वेद ज्ञान है अर्थात आयु का ज्ञान ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के रोग का निवारण करना है। दक्ष प्रजापति से आयुर्वेद पद्धति का ज्ञान हासिल करने वाले अश्विनी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विजातीय शल्य क्रिया के माध्यम से गणेश के शरीर पर हाथी का सिर प्रत्यारोपितकरने का उल्लेख किया गया है।
आयुर्वेद ने स्वस्थ शरीर को ही धन माना है। इसीलिए स्वास्थ पहले है धन-दौलत बाद में। इसलिए धनतेरस के मौके पर स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही सुख सुविधाएं प्रदान करने वाली वस्तुओं की खरीददारी का भी प्रचलन है। क्योंकि कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान धनवंतरि का इसी तिथि को आरोग्य देवता के रूप में जयंती मनाई जाती है और इनके नाम का स्मरण करने मात्र से समस्त रोग दूर हो जाते हैं। दीपावली में पहली पूजा आरोग्य देवता धनवंतरि की होती है। आज ही के विशेष दिन ही दीप पर्व `दिवाली` की रात में लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए मूर्ति खरीदने का प्रचलन है।

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