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हर उपहार से बड़ा माँ का उपकार

Saturday 12 May 2012


  • धीरेन्द्र अस्थाना  
माँ! एक ऐसा शब्द है जो याद आते ही हमारे जहन में एक फुरफुरी-सी दौड़ने लगती है। चाहे वह कोई भी माँ, किसी की भी माँ हो सभी के लिए एक समान ही यह गरिमामय भाव अंतर्मन में दौड़ता रहता है। माँ को जितने भी शब्दों से नवाजा जाएँ वे अपने आप में कम ही रहेंगे। क्योंकि माँ वो गरिमामय शब्द है जिसकी व्याख्या करना बहुत ही मुश्किल है। 
माँ का सफर जन्म होने के दिन से ही शुरू हो जाता है। सभी को यह लगता है कि एक बेटी ने जन्म लिया है इसका मतलब है उसने अपनी जिंदगी में सीढ़ी दर सीढ़ी काम करते ही चले जाना है। पहले एक बेटी, फिर एक युवा, फिर एक बहू और पत्नी फिर आता है माँ बनने का सफर। माँ बनने के साथ ही उसके अपने सारे हक, उसकी अपनी सारी इच्छाएँ और महत्वाकाँक्षाएँ भुला कर उसे अपने कर्तव्यों को निभाने की जिम्मेदारी से सरोबार होना पड़ता है। फिर भले ही इन सब में उसकी इच्छा हो ना हो। उसे इन सारे दौर से गुजरना ही पड़ता है। चाहे मन से चाहे अमन से लेकिन उसके जन्म के साथ ही ये सारे उसके साथी बन जाते हैं। 
एक बेटी के सफर तय करते और उसके माँ बनने के पूर्व ही ससुराल वालों की निगाहें उस पल का इंतजार थामे होती है कि वह बेटे की माँ बनती है या बेटी की। माँ बनना ससुराल वालों के लिए इतना मायने नहीं रखता जितना उसका बेटे को जन्म देना मायने रखता है। 
बेटा-बेटी की आँस लिए माँ बनने का उसका यह सफर सही मायने में यही से शुरू हो जाता है। अगर बेटे की माँ बन गई तो वह ससुराल वालों की आँखों का तारा बन जात‍ी है उसके उलटे अगर बेटी को जन्म दिया है तो इस दुख के साथ कि 'बेटी जनी है' उसको तानो और कष्‍टों में ही अपना जीवन गुजारना पड़ता है। और तब यह बात और भी ज्यादा दुखद हो जात‍ी है जब वह दो-तीन ब‍ेटियों को जन्म दे चुकी होती हैं। 
वह खुद जो अभी-अभी माँ बनी है या माँ बनने जा रही है... वह माँ क्या चाहती है, उसे बेटा पसंद है या बेटी इस बात से किसी को कोई सरोकार नहीं होता। उसके दिल में चल रही कशमकश से किसी को कोई फर्क नहीं पड़ता! फर्क पड़ता है तो सिर्फ उस माँ को जिसने अभी-अभी उस बच्चे को जन्म दिया है। उस माँ का मन कसोटकर रह जाता है पर फिर भी क्या लोग उसके मन की भावनाएँ, उसके मन की उलझन को समझने की कोशिश करते हैं। नहीं करते...! लेकिन फिर भी वो माँ अपने सारे गमों को भुलाकर, जीवन में आ रही हर परेशानी को अपने दूर रखकर अपना सारा प्यार-दुलार अपने बच्चे पर उंडेलकर अपनी मा‍तृत्व की छाँव उस पर ढाँके रख‍ती है। ऐसी माँ का 'आदर' स्वरूप सिर्फ एक दिन मदर्स डे मनाकर कभी भी नहीं किया जा सकता। ऐसी माँ के लिए तो मानव जीवन ही कुर्बान होना चाहिए। ऐसी देवी माँ हो या साधारण माँ जिसने भगवानों से लेकर कई महापुरुषों, कई वीरांगनाओं जन्म देकर हमारी देश-दुनिया को कई अविस्मरणीय संतानों ने नवाजा है। ऐसी माँ के‍ लिए तो हर दिन मनाया गया मातृ दिवस भी उसके उपकारों के आगे कम पड़ जाएगा। ऐसी ही माँ जननी को मातृ दिवस यानी मदर्स डे पर मेरा श‍त-शत नमन....। 

हे माँ.........! आपकी महिमा अपरंपार है...।

हैप्पी मदर'स डे के मौके पर माँ को भेट  

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