उत्तर प्रदेश में विभिन्न आरोपों में जेलों में बंद माननीयों को अब अपने इलाके की जेलों में रहने की तमन्ना जाग उठी है। उनकी इसी हसरत को देखते हुए सरकार भी इस दिशा में आगे बढ़ने का मन बना रही है।लाख टके का सवाल यह है कि हत्या और बलात्कार जैसे संगीन आरोपों को लेकर जेलों में बंद दबंग और बाहुबली विधायकों को उनके इलाके की जेलों में भेजने और उन्हें सुख सुविधाए दिए जाने की मांग कहां तक जायज है?
वरिष्ठ टीकाकारों की मानें तो अपने इलाके की जेलों में रहने के दौरान आरोपी विधायकों को अपनी हनक दिखाने, अपने धन-बल और नेटवर्क का पूरा इस्तेमाल करने तथा तमाम तरह की सुविधाओं के उपभोग करने की पूरी छूट मिल जाती है। अपने जिले की जेल में पहुंचने के पीछे उनके तमाम तरह के हित जुड़े होते हैं।
उत्तर प्रदेश में चल रहे मौजूदा विधानसभा सत्र के दौरान इस बात की मांग की गई कि जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक आरोपी सांसदों और विधायकों को जेलों में विशेष सुविधा का दर्जा दिया जाए और उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्रों में स्थित जेलों में ही रखे जाने की व्यवस्था की जाए।
इस बीच प्रदेश के जेल मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी कहा कि सरकार इस मांग पर विचार कर सकती है।
सवाल यह उठता है कि गम्भीर आरोपों में जेलों में बंद विधायकों को सरकार इतनी खास तवज्जो क्यों देने जा रही है। जेलों के भीतर विशेष सुविधाओं की मांग करना कहां तक जायज है?
उत्तर प्रदेश में विधायक की हत्या से लेकर तमाम तरह के संगीन आरोपों में कई विधायक विभिन्न जेलों में बंद हैं। क्या उन्हें जेलों में ढेर सारी सुविधाएं इसलिए मुहैया करा दी जाएं क्योंकि वह जनप्रतिनिधि हैं। जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एक आम कैदी की तरह व्यवहार क्यों नहीं किया जा सकता है?
विधानसभा में हद तो तब हो गई जब कारागार मंत्री राजा भैया ने आगरा की जेल में बंद निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी को उनके इलाके की जेल दिलवाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाने तक का आश्वासन दे दिया।
विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने प्रश्न के जरिए यह मांग की थी कि ब्रिटिशकाल के दौरान जेल यातनागृह थे, लेकिन अब उन्हें सुधार गृह माना जाता है। न्याय का यही नैसर्गिक सिद्धांत है कि जब तक दोष साबित न हो जाता तब तक किसी को दोषी नहीं माना जाता। बहुत से सांसद और विधायक भी विभिन्न दफाओं में जेलों में बंद किए जाते हैं और बाद में अदालत से वे निर्दोष साबित हो जाते हैं।
उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ईश्वर चंद्र द्विवेदी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि ऐसी बातें इसलिए उठाई जा रही हैं ताकि अपने भविष्य के लिए जमीन तैयार की जा सके।
द्विवेदी बड़ी साफगोई से कहते हैं कि अब सूचना के अधिकार का जमाना आ गया है। सूचना के अधिकार का प्रयोग कर लोग तमाम तरह की जानकारियां हासिल कर रहे हैं। इसीलिए जनप्रतिनिधियों पर दबाव बढ़ा है। अब कोई माफिया यदि बनारस से जुड़ा है और उसे कई सौ किलोमीटर दूर ले जाकर दूसरी जेल में बंद कर दिया जाए तो निश्चित तौर पर उसका नेटवर्क प्रभावित होता है।
द्विवेदी ने कहा कि इसके पीछे साफतौर पर मंशा यही है कि इस तरह के उपाय किए जाएं और कानून में बदलाव की बात की जाए ताकि भविष्य में यदि किसी तरह की नौबत आए तो इसका फायदा उठाया जा सके।वरिष्ठ टीकाकारों की मानें तो अपने इलाके की जेलों में रहने के दौरान आरोपी विधायकों को अपनी हनक दिखाने, अपने धन-बल और नेटवर्क का पूरा इस्तेमाल करने तथा तमाम तरह की सुविधाओं के उपभोग करने की पूरी छूट मिल जाती है। अपने जिले की जेल में पहुंचने के पीछे उनके तमाम तरह के हित जुड़े होते हैं।उत्तर प्रदेश में चल रहे मौजूदा विधानसभा सत्र के दौरान इस बात की मांग की गई कि जब तक दोष साबित न हो जाए तब तक आरोपी सांसदों और विधायकों को जेलों में विशेष सुविधा का दर्जा दिया जाए और उन्हें उनके निर्वाचन क्षेत्रों में स्थित जेलों में ही रखे जाने की व्यवस्था की जाए।इस बीच प्रदेश के जेल मंत्री रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया ने भी कहा कि सरकार इस मांग पर विचार कर सकती है।सवाल यह उठता है कि गम्भीर आरोपों में जेलों में बंद विधायकों को सरकार इतनी खास तवज्जो क्यों देने जा रही है। जेलों के भीतर विशेष सुविधाओं की मांग करना कहां तक जायज है?उत्तर प्रदेश में विधायक की हत्या से लेकर तमाम तरह के संगीन आरोपों में कई विधायक विभिन्न जेलों में बंद हैं। क्या उन्हें जेलों में ढेर सारी सुविधाएं इसलिए मुहैया करा दी जाएं क्योंकि वह जनप्रतिनिधि हैं। जनप्रतिनिधियों के खिलाफ एक आम कैदी की तरह व्यवहार क्यों नहीं किया जा सकता है?विधानसभा में हद तो तब हो गई जब कारागार मंत्री राजा भैया ने आगरा की जेल में बंद निर्दलीय विधायक मुख्तार अंसारी को उनके इलाके की जेल दिलवाने के लिए मुख्यमंत्री से गुहार लगाने तक का आश्वासन दे दिया।विधानसभा में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रमोद तिवारी ने प्रश्न के जरिए यह मांग की थी कि ब्रिटिशकाल के दौरान जेल यातनागृह थे, लेकिन अब उन्हें सुधार गृह माना जाता है। न्याय का यही नैसर्गिक सिद्धांत है कि जब तक दोष साबित न हो जाता तब तक किसी को दोषी नहीं माना जाता। बहुत से सांसद और विधायक भी विभिन्न दफाओं में जेलों में बंद किए जाते हैं और बाद में अदालत से वे निर्दोष साबित हो जाते हैं।उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक ईश्वर चंद्र द्विवेदी ने आईएएनएस से बातचीत में कहा कि ऐसी बातें इसलिए उठाई जा रही हैं ताकि अपने भविष्य के लिए जमीन तैयार की जा सके।
द्विवेदी ने कहा कि इसके पीछे साफतौर पर मंशा यही है कि इस तरह के उपाय किए जाएं और कानून में बदलाव की बात की जाए ताकि भविष्य में यदि किसी तरह की नौबत आए तो इसका फायदा उठाया जा सके।
माल में खरीदारी की समझदारी का रखे ध्यान
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*धीरेन्द्र अस्थाना *
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