धीरेंद्र अस्थाना
निजी स्कूलों पर जो सबसे बड़े आरोप लगते रहे हैं, वो है दाखिले और फीस के नाम पर मोटी कमाई करना.लखनऊ के अभिभावक यह बात तो खुले तौर पर कहते सुने जा सकते हैं कि ये स्कूल वाले लूट रहे हैं, पर खुल कर विरोध करने से ये बचते रहे हैं. बात साफ़ है, इनके बच्चों का भविष्य भी इन्ही स्कूलों की पढाई पर टिका हुआ है, और लखनऊ जैसे शहर में विकल्पों की भी भारी कमी है. स्कूल की व्यवस्था में खर्च के बाद भी बड़ी राशि इनकी बचत होती है. स्कूलों में फीस का यहाँ कोई मापदंड नहीं है, जिसे जो मन हुआ थोप दिया. सरकार द्वारा इन स्कूलों के निबंधन के बाद ये सम्भावना तय लगती है कि इन्हें फीस में भी एकरूपता रखनी होगी.

बाल संरक्षण आयोग की अध्यक्ष का कहना है कि प्रदेश में कई ऐसे स्कूल हैं जिनका एफलियेशन नहीं है, और ये बच्चों का दाखिला ले लेते हैं.बाद में पता चलता है कि बच्चों को दाखिले के लिए दूसरे स्कूल भेजा जा रहा है.दाखिले के नाम पर मोटी कमाई करने वाले इन स्कूलों के विरोध में अभिभावकों को आगे आना चाहिए.
लेखक लखनऊ से प्रकाशित हो रहे दैनिक लोकमत में संवाददाता है