माल में खरीदारी की समझदारी का रखे ध्यान
-
*धीरेन्द्र अस्थाना *
चमचमाती भव्य बहुमंजिली इमारतों की सजी-धजी दुकानों में खरीदारी का
एक अलग अंदाज और आनंद होता है। यहां गृहणियों के लिए ...
मनोरंजन प्रेम में मलाई काटने की तैयार
घरेलू महिलाओं व बच्चों के मनोरंजन
के प्रेम से मलाई काटने की तैयारी कर ली गई है। दो दिन बाद से टीवी पर सेट
टॉप बाक्स के बगैर चैनलों का प्रसारण बंद होने की संभावना के बाद सेटटॉप
बाक्स तथा डीटीएच के विक्रेताओं ने आकर्षक पैकेज निकाले हैं जिसमें किस्त
पर कनेक्शन देकर ज्यादा वसूली की तैयारी की जा रही है।
प्रदेश के लखनऊ, कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी, आगरा, मेरठ व गाजियाबाद
सहित देश के 38 जिलों में एक अप्रैल से सेटटॉप बाक्स अथवा डीटीएच के बगैर
केबल के प्रसारण पर रोक लगाने के निर्देश दिए हैं। इसकी तारीख करीब आने के
साथ ही केबल ऑपरेटरों तथा डीटीएच कनेक्शन बेचने वालों के यहां उपभोक्ताओं
की भीड़ जमा होने लगी है। शहर में सेटटॉप बाक्स की कमी की जानकारी मिलने के
बाद डीटीएच विक्रेताओं ने ग्राहकों के मनोरंजन प्रेम से मलाई काटने की
योजना बनाई और फुटकर डीटीएच बेचने वालों ने आकर्षक पैकेज योजना निकाली है।
इसके लिये गोविंद नगर तथा बिरहाना रोड में कई मोबाइल तथा टीवी विक्रेताओं
ने दुकानों के बाहर बैनर भी लगा रखे हैं। गोविंद नगर में एक दुकान के बाहर
849 में डीटीएच कनेक्शन मिलने और दूसरी दुकान के बाहर लगे बैनर में डीटीएच
कनेक्शन के साथ 499 रुपये की प्रेस मुफ्त मिलने का ऑफर दिया गया है।
दुकानों के बाहर लगे बैनर देखकर जाने वाले उपभोक्ताओं को बताया जाता है कि
उन्हें किस्त पर कितना भुगतान करना होगा शुरुआत में 849 रुपये जमा करने पर
उपभोक्ता को मासिक रिचार्ज के 200 रुपये के साथ डीटीएच की किस्त का 150
रुपये 11 माह तक देना होगा। ऐसे में भुगतान 25 सौ रुपये से ज्यादा का हो
जाता है। वैसे एक साथ भुगतान करने पर कनेक्शन लेने पर 1750 रुपये में ही
कनेक्शन देने की बात कही जा रही है।
दूसरी दुकान में उपभोक्ताओं को बताया जा रहा है कि एक साथ भुगतान करने पर 1750 रुपये में ही कनेक्शन मिल जाएगा लेकिन इसमें कम से कम पांच दिन लगेंगे। वैसे 999 रुपये देकर 120 रुपये की ग्यारह किस्तों पर कनेक्शन भी मिल सकता है लेकिन किराया 200 रुपये के साथ 120 रुपये महीने की चेक पहले ही देनी होगी। दो सौ रुपये के रिचार्ज पर 282 चैनल देखने को मिलेंगे लेकिन स्पोर्टस चैनल नहीं मिलेंगे। इसके लिये 220 रुपये का रिचार्ज कराना होगा। किस्त पर कनेक्शन लेने पर जो पैकेज पहले महीने लिया जायेगा वह पूरे साल चलेगा इसके बाद ही इसे बदला जा सकता है।
इधर इन योजनाओं की जानकारी के बाद कुछ क्षेत्रों के केबल ऑपरेटरों ने भी किस्त पर सेट टॉप बाक्स लगाने की योजना चालू कर दी है इसके लिए घरों में पर्चे बांटे जा रहे है। जिसमें कहा जा रहा है कि मासिक किराये के साथ दस माह तक 100 रुपये देने पर बाक्स मिल जाएगा इसी तरह दो हजार रुपये देने पर सेट टॉप बाक्स के साथ एक वर्ष तक किराया नहीं लिया जाएगा। किराये पर छूट देते हुए उपभोक्ताओं को ऑफर दिया जा रहा है कि दो टीवी होने पर दो सेट टॉप बाक्स लगवाने पर एक वर्ष तक सिर्फ सौ रुपये महीने ही किराया लिया जाएगा।
दूसरी दुकान में उपभोक्ताओं को बताया जा रहा है कि एक साथ भुगतान करने पर 1750 रुपये में ही कनेक्शन मिल जाएगा लेकिन इसमें कम से कम पांच दिन लगेंगे। वैसे 999 रुपये देकर 120 रुपये की ग्यारह किस्तों पर कनेक्शन भी मिल सकता है लेकिन किराया 200 रुपये के साथ 120 रुपये महीने की चेक पहले ही देनी होगी। दो सौ रुपये के रिचार्ज पर 282 चैनल देखने को मिलेंगे लेकिन स्पोर्टस चैनल नहीं मिलेंगे। इसके लिये 220 रुपये का रिचार्ज कराना होगा। किस्त पर कनेक्शन लेने पर जो पैकेज पहले महीने लिया जायेगा वह पूरे साल चलेगा इसके बाद ही इसे बदला जा सकता है।
इधर इन योजनाओं की जानकारी के बाद कुछ क्षेत्रों के केबल ऑपरेटरों ने भी किस्त पर सेट टॉप बाक्स लगाने की योजना चालू कर दी है इसके लिए घरों में पर्चे बांटे जा रहे है। जिसमें कहा जा रहा है कि मासिक किराये के साथ दस माह तक 100 रुपये देने पर बाक्स मिल जाएगा इसी तरह दो हजार रुपये देने पर सेट टॉप बाक्स के साथ एक वर्ष तक किराया नहीं लिया जाएगा। किराये पर छूट देते हुए उपभोक्ताओं को ऑफर दिया जा रहा है कि दो टीवी होने पर दो सेट टॉप बाक्स लगवाने पर एक वर्ष तक सिर्फ सौ रुपये महीने ही किराया लिया जाएगा।
प्रयाग की ठण्ड में जब ......
नागा साधूप्रयाग की ठण्ड में जब पारा शून्य पर पहुँच गया हो इन नागा साधुओं की देख कर मन आश्चर्य से भर उठता है। कैसे जब हम इतने सारे स्वेटर , टोपी , शॉल ले कर भी ठिठुर रहे है और ये सिर्फ भस्म लगा कर मस्त है। सच है फ़क़ीर ही दुनिया का सबसे अमीर इंसान है।ये आकाश को ही अपना वस्त्र और भूमि को अपना आसन मानते है।
नागा साधू सिर्फ कुम्भ मेले के दौरान आसानी से देखे जा सकते है अन्यथा ये हिमालय में कठिन स्थानों पर कड़े अनुशासन में रहते है।इनके क्रोध के कारण मीडिया और आम जनता इनसे दूर रहती है।पर सच्चाई यह है की ये तभी क्रोध में आते है जब कोई इनसे बुरा व्यवहार करे। अन्यथा ये अपनी ही मस्ती में रहते है।
जब जब कुम्भ मेले पड़तें हैं तब तब नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवन शैली देखने को मिलती है । पूरे शरीर मे भभूत मले , निर्वस्त्र तथा बड़ी बड़ी जटाओं वाले नागा साधू कुम्भ स्नान का प्रमुख आकर्षण होते हैं । कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार इन्हे ही मिलता है , पहले वर्षो कड़ी तपस्या और वैरागी जीवन जीते हैं इसके बाद नागा जीवन की विलझण परंपरा से दीक्षित होते है । ये लोग अपने ही हांथों अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करते हैं , जब की श्राद्ध आदि का कार्य मरणोंपरांत होता है , अपना श्राद्ध और पिंड दान करने के बाद ही साधू बनते हैऔर सन्यासी जीवन की उच्चतम पराकाष्ठा तथा अत्यंत विकट परंपरा मे शामिल होने का गौरव प्राप्त होता है ।
भगवान शिव से जुड़ी मान्यताओं मे जिस तरह से उनके गणो का वर्णन है ठीक उन्ही की तरह दिखने वाले, हाथो मे चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देख कर आम आदमी एक बारगी हैरत और विस्मयकारी की मिलीजुली भावना से भर उठता है ।ज़रूरी नहीं कि सारे साधू चिलम ही पिएँ, बहुत से कुछ अलग करतब करते भी नज़र आ जाते है।ये अपने बाल तभी काटते है जब इन्हें कोई सिद्धि प्राप्त हो जाती है अन्यथा ये भगवान् शिव की भांति जटाएं रखते है। ये लोग उग्र स्वभाओ के होते हैं, साधु संतो के बीच इनका एक प्रकार का आतंक होता है , नागा लोग हटी , गुस्सैल , अपने मे मगन और अड़ियल से नजर आते हैं , लेकिन सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्राद्ध , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,
अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है। वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं । पारे का प्रयोग कर इनकी कामेन्द्रियाँ भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।
शंकराचार्य ने विधर्मियों के बढ़ते प्रचार को रोकने के लिए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए सन्यासी संघो का गठन किया था । कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े मे सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता था । औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था , आज संतो के तेरह अखाड़ों मे सात सन्यासी अखाड़े (शैव) अपने अपने नागा साधू बनाते हैं :- ये हैं जूना , महानिर्वणी , निरंजनी , अटल ,अग्नि , आनंद और आवाहन आखाडा ।
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे ।
धर्म की रक्षा के जिस उद्देश्य से नागा परंपरा की स्थापना की गयी थी शायद अब वो समय आ गया है। नागा के धर्म मे दीक्षित होने के बाद कठोरता से अनुसासन और वैराग्य का पालन करना होता है , यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कारवाही की जाती है और दुबारा ग्रहस्थ आश्रम मे भेज दिया जाता है ।नागा साधू सिर्फ कुम्भ मेले के दौरान आसानी से देखे जा सकते है अन्यथा ये हिमालय में कठिन स्थानों पर कड़े अनुशासन में रहते है।इनके क्रोध के कारण मीडिया और आम जनता इनसे दूर रहती है।पर सच्चाई यह है की ये तभी क्रोध में आते है जब कोई इनसे बुरा व्यवहार करे। अन्यथा ये अपनी ही मस्ती में रहते है।जब जब कुम्भ मेले पड़तें हैं तब तब नागा साधुओं की रहस्यमयी जीवन शैली देखने को मिलती है । पूरे शरीर मे भभूत मले , निर्वस्त्र तथा बड़ी बड़ी जटाओं वाले नागा साधू कुम्भ स्नान का प्रमुख आकर्षण होते हैं । कुम्भ के सबसे पवित्र शाही स्नान मे सब से पहले स्नान का अधिकार इन्हे ही मिलता है , पहले वर्षो कड़ी तपस्या और वैरागी जीवन जीते हैं इसके बाद नागा जीवन की विलझण परंपरा से दीक्षित होते है । ये लोग अपने ही हांथों अपना ही श्राद्ध और पिंड दान करते हैं , जब की श्राद्ध आदि का कार्य मरणोंपरांत होता है , अपना श्राद्ध और पिंड दान करने के बाद ही साधू बनते हैऔर सन्यासी जीवन की उच्चतम पराकाष्ठा तथा अत्यंत विकट परंपरा मे शामिल होने का गौरव प्राप्त होता है ।भगवान शिव से जुड़ी मान्यताओं मे जिस तरह से उनके गणो का वर्णन है ठीक उन्ही की तरह दिखने वाले, हाथो मे चिलम लिए और चरस का कश लगते हुए इन साधुओं को देख कर आम आदमी एक बारगी हैरत और विस्मयकारी की मिलीजुली भावना से भर उठता है ।ज़रूरी नहीं कि सारे साधू चिलम ही पिएँ, बहुत से कुछ अलग करतब करते भी नज़र आ जाते है।ये अपने बाल तभी काटते है जब इन्हें कोई सिद्धि प्राप्त हो जाती है अन्यथा ये भगवान् शिव की भांति जटाएं रखते है। ये लोग उग्र स्वभाओ के होते हैं, साधु संतो के बीच इनका एक प्रकार का आतंक होता है , नागा लोग हटी , गुस्सैल , अपने मे मगन और अड़ियल से नजर आते हैं , लेकिन सन्यासियों की इस परंपरा मे शामील होना बड़ा कठिन होता है और अखाड़े किसी को आसानी से नागा रूप मे स्वीकार नहीं करते। वर्षो बकायदे परीक्षा ली जाती है जिसमे तप , ब्रहमचर्य , वैराग्य , ध्यान ,सन्यास और धर्म का अनुसासन तथा निष्ठा आदि प्रमुखता से परखे-देखे जाते हैं। फिर ये अपना श्राद्ध , मुंडन और पिंडदान करते हैं तथा गुरु मंत्र लेकर सन्यास धर्म मे दीक्षित होते है इसके बाद इनका जीवन अखाड़ों , संत परम्पराओं और समाज के लिए समर्पित हो जाता है,अपना श्राद्ध कर देने का मतलब होता है सांसरिक जीवन से पूरी तरह विरक्त हो जाना , इंद्रियों मे नियंत्रण करना और हर प्रकार की कामना का अंत कर देना होता है। वे पूरी तरह निर्वस्त्र रह कर गुफाओं , कन्दराओं मे कठोर तप करते हैं । पारे का प्रयोग कर इनकी कामेन्द्रियाँ भंग कर दी जाती हैं”। इस प्रकार से शारीरिक रूप से तो सभी नागा साधू विरक्त हो जाते हैं लेकिन उनकी मानसिक अवस्था उनके अपने तप बल निर्भर करती है ।शंकराचार्य ने विधर्मियों के बढ़ते प्रचार को रोकने के लिए और सनातन धर्म की रक्षा के लिए सन्यासी संघो का गठन किया था । कालांतर मे सन्यासियों के सबसे बड़े जूना अखाड़े मे सन्यासियों के एक वर्ग को विशेष रूप से शस्त्र और शास्त्र दोनों मे पारंगत करके संस्थागत रूप प्रदान किया । उद्देश्य यह था की जो शास्त्र से न माने उन्हे शस्त्र से मनाया जाय । ये नग्ना अवस्था मे रहते थे , इन्हे त्रिशूल , भाला ,तलवार,मल्ल और छापा मार युद्ध मे प्रशिक्षिण दिया जाता था । औरंगजेब के खिलाफ युद्ध मे नागा लोगो ने शिवाजी का साथ दिया था , आज संतो के तेरह अखाड़ों मे सात सन्यासी अखाड़े (शैव) अपने अपने नागा साधू बनाते हैं :- ये हैं जूना , महानिर्वणी , निरंजनी , अटल ,अग्नि , आनंद और आवाहन आखाडा ।
जूना के अखाड़े के संतों द्वारा तीनों योगों- ध्यान योग , क्रिया योग , और मंत्र योग का पालन किया जाता है यही कारण है की नागा साधू हिमालय के ऊंचे शिखरों पर शून्य से काफी नीचे के तापमान पर भी जीवित रह लेते हैं, इनके जीवन का मूल मंत्र है आत्मनियंत्रण, चाहे वह भोजन मे हो या फिर विचारों मे ।धर्म की रक्षा के जिस उद्देश्य से नागा परंपरा की स्थापना की गयी थी शायद अब वो समय आ गया है। नागा के धर्म मे दीक्षित होने के बाद कठोरता से अनुसासन और वैराग्य का पालन करना होता है , यदि कोई दोषी पाया गया तो उसके खिलाफ कारवाही की जाती है और दुबारा ग्रहस्थ आश्रम मे भेज दिया जाता है ।
धनवंतरि की पूजा से होती है `धन वर्षा`
पुराणों में इस बात का वर्णन है कि समुद्र मंथन के अंतिम दिन भगवान विष्णु
कलश में अमृत लेकर `धनवंतरि` के रूप में प्रकट हुए थे और ऐसी मान्यता है कि
भगवान धनवंतरि की पूजा से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर `धन वर्षा` करती हैं।
दीपों के पर्व दीपावली के दो दिन पूर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को देश भर में धनतेरस मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस के दिन धातु की कोई वस्तु खरीदने का रिवाज काफी समय से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु अत्यधिक फलदायक होती है।
किंवदंती कुछ ऐसी है कि देवताओं और राक्षसों के बीच हुए युद्धविराम के समझौते के बाद जब समुद्र में मंथन किया गया था, तब समुद्र से चौदह रत्न निकले थे। इनमें एक रत्न अमृत भी था। भगवान विष्णु देवताओं को अमर करने के लिए `धनवंतरि` का रूप लेकर प्रकट हुए थे। और कलश में अमृत लेकर समुद्र से निकले थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
शास्त्रों में भगवान धनवंतरि की परिकल्पना चार भुजाओं वाले तेजवान व्यक्तित्व के रूप में की गई है। इनके एक हाथ में अमृत कलश, एक हाथ में शंख व एक हाथ में आयुर्वेद तंत्र लिपिबद्ध रुपमें है। चौथे हाथ में वनस्पतियां भी दिखाई देती है।
चूंकि भगवान विष्णु ही धनवंतरि के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से व्यापारी वर्ग के अलावा गृहस्थ जीवन बिता रहे लोगों को काफी लाभ होता है। त्रयोदशी की सुबह स्नान के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र की स्थापना करनी चाहिए और उसके बाद मंत्रोच्चारण करना चाहिए। आचमन के लिए जल छोड़ना चाहिए। कहा यह भी जाता है कि धनवंतरि की पूजा भगवान विष्णु की पूजा है, इसलिए माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद के प्रवर्तक भी माना जाता है। इनकी जयंती पर आयुर्वेद चिकित्सकों सहित अन्य चिकित्सक एवं वैज्ञानिक श्रद्धा भक्ति के साथ पूजन हवन करके इस दिन को मनाते हैं। इन्हें देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है। इस दिन ही धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस का भी पर्व मनाया जाता है। सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता में भगवान धनवंतरि को चिकित्सा विधा में निपुण बताया गया है। उन्हें शल्य चिकित्सा का प्रवर्तक भी माना जाता है।
धनवंतरि मानवों को रोगों से बचाने और उसे स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद के ज्ञान को भी अपने साथ लाए थे। आयुर्वेद अनादि और अनंत है। सर्वप्रथम इसका ज्ञान सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को हुआ। इसीलिए ब्रह्मा को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। ब्रह्मा के बाद दक्ष प्रजापति अश्विन कुमारों, इंद्र, भारद्वाज, पुनर्वसु,अग्निवेशतथा धनवंतरि जैसे ऋषियों, मुनियों द्वारा आयुर्वेद भूलोक पर अवतरित हुआ। शरीर, इंद्रीयपनऔर आत्मा के संयोग को आयु कहा गया है। वेद ज्ञान है अर्थात आयु का ज्ञान ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के रोग का निवारण करना है। दक्ष प्रजापति से आयुर्वेद पद्धति का ज्ञान हासिल करने वाले अश्विनी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विजातीय शल्य क्रिया के माध्यम से गणेश के शरीर पर हाथी का सिर प्रत्यारोपितकरने का उल्लेख किया गया है।
आयुर्वेद ने स्वस्थ शरीर को ही धन माना है। इसीलिए स्वास्थ पहले है धन-दौलत बाद में। इसलिए धनतेरस के मौके पर स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही सुख सुविधाएं प्रदान करने वाली वस्तुओं की खरीददारी का भी प्रचलन है। क्योंकि कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान धनवंतरि का इसी तिथि को आरोग्य देवता के रूप में जयंती मनाई जाती है और इनके नाम का स्मरण करने मात्र से समस्त रोग दूर हो जाते हैं। दीपावली में पहली पूजा आरोग्य देवता धनवंतरि की होती है। आज ही के विशेष दिन ही दीप पर्व `दिवाली` की रात में लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए मूर्ति खरीदने का प्रचलन है।
दीपों के पर्व दीपावली के दो दिन पूर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को देश भर में धनतेरस मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। धनतेरस के दिन धातु की कोई वस्तु खरीदने का रिवाज काफी समय से है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन खरीदी गई वस्तु अत्यधिक फलदायक होती है।
किंवदंती कुछ ऐसी है कि देवताओं और राक्षसों के बीच हुए युद्धविराम के समझौते के बाद जब समुद्र में मंथन किया गया था, तब समुद्र से चौदह रत्न निकले थे। इनमें एक रत्न अमृत भी था। भगवान विष्णु देवताओं को अमर करने के लिए `धनवंतरि` का रूप लेकर प्रकट हुए थे। और कलश में अमृत लेकर समुद्र से निकले थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
शास्त्रों में भगवान धनवंतरि की परिकल्पना चार भुजाओं वाले तेजवान व्यक्तित्व के रूप में की गई है। इनके एक हाथ में अमृत कलश, एक हाथ में शंख व एक हाथ में आयुर्वेद तंत्र लिपिबद्ध रुपमें है। चौथे हाथ में वनस्पतियां भी दिखाई देती है।
चूंकि भगवान विष्णु ही धनवंतरि के रूप में प्रकट हुए थे। इस दिन धनवंतरि की पूजा करने से व्यापारी वर्ग के अलावा गृहस्थ जीवन बिता रहे लोगों को काफी लाभ होता है। त्रयोदशी की सुबह स्नान के बाद पूर्व दिशा की ओर मुख कर भगवान धनवंतरि की मूर्ति या चित्र की स्थापना करनी चाहिए और उसके बाद मंत्रोच्चारण करना चाहिए। आचमन के लिए जल छोड़ना चाहिए। कहा यह भी जाता है कि धनवंतरि की पूजा भगवान विष्णु की पूजा है, इसलिए माता लक्ष्मी प्रसन्न होकर धन की वर्षा करती हैं।
भगवान धनवंतरि को आयुर्वेद के प्रवर्तक भी माना जाता है। इनकी जयंती पर आयुर्वेद चिकित्सकों सहित अन्य चिकित्सक एवं वैज्ञानिक श्रद्धा भक्ति के साथ पूजन हवन करके इस दिन को मनाते हैं। इन्हें देवताओं का चिकित्सक भी कहा जाता है। इस दिन ही धन त्रयोदशी अर्थात धनतेरस का भी पर्व मनाया जाता है। सुश्रुत संहिता तथा चरक संहिता में भगवान धनवंतरि को चिकित्सा विधा में निपुण बताया गया है। उन्हें शल्य चिकित्सा का प्रवर्तक भी माना जाता है।
धनवंतरि मानवों को रोगों से बचाने और उसे स्वस्थ रखने के लिए चिकित्सा शास्त्र आयुर्वेद के ज्ञान को भी अपने साथ लाए थे। आयुर्वेद अनादि और अनंत है। सर्वप्रथम इसका ज्ञान सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा को हुआ। इसीलिए ब्रह्मा को आयुर्वेद का जनक माना जाता है। ब्रह्मा के बाद दक्ष प्रजापति अश्विन कुमारों, इंद्र, भारद्वाज, पुनर्वसु,अग्निवेशतथा धनवंतरि जैसे ऋषियों, मुनियों द्वारा आयुर्वेद भूलोक पर अवतरित हुआ। शरीर, इंद्रीयपनऔर आत्मा के संयोग को आयु कहा गया है। वेद ज्ञान है अर्थात आयु का ज्ञान ही आयुर्वेद है। आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ के स्वास्थ्य की रक्षा करना और रोगी के रोग का निवारण करना है। दक्ष प्रजापति से आयुर्वेद पद्धति का ज्ञान हासिल करने वाले अश्विनी के बारे में पौराणिक ग्रंथों में विजातीय शल्य क्रिया के माध्यम से गणेश के शरीर पर हाथी का सिर प्रत्यारोपितकरने का उल्लेख किया गया है।
आयुर्वेद ने स्वस्थ शरीर को ही धन माना है। इसीलिए स्वास्थ पहले है धन-दौलत बाद में। इसलिए धनतेरस के मौके पर स्वास्थ्य की रक्षा के साथ ही सुख सुविधाएं प्रदान करने वाली वस्तुओं की खरीददारी का भी प्रचलन है। क्योंकि कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया। ऐसा कहा जाता है कि भगवान धनवंतरि का इसी तिथि को आरोग्य देवता के रूप में जयंती मनाई जाती है और इनके नाम का स्मरण करने मात्र से समस्त रोग दूर हो जाते हैं। दीपावली में पहली पूजा आरोग्य देवता धनवंतरि की होती है। आज ही के विशेष दिन ही दीप पर्व `दिवाली` की रात में लक्ष्मी-गणेश की पूजा के लिए मूर्ति खरीदने का प्रचलन है।
Subscribe to:
Posts (Atom)